रिटेल में FDI आनी ही चाहिए क्योंकि,
- आढ़तिया किसान को पता भी नहीं लगने देता कि उसका माल थोक विक्रेता को किस भाव बेच रहा है. कपड़े के नीचे हाथ से हाथ टटोल कर सौदा होता है.
- थोक विक्रेता के तो पास आढ़तिया, किसान को फटकने भी नहीं देता.
- किसान का पैसा आराम से धीरे-धीरे देता है, कई तरह की कटौतियों के बाद.
- आपने भुगतान किया नहीं कि दुकान वाला आपको पहचानने से भी इन्कार कर देता है.
- आपको दुकान के बाहर खड़ा रख कर खुद आराम से बैठता है, लौंडे नौकरी बजाते हैं.
- दुकानवाला सीधे मुंह ग्राहक से बात नहीं करता. उसका काम बस गल्ले पर बैठना ही दिखाई देता है.
- ख़रीदा हुआ कुछ वापिस करने की कोशिश की है कभी ? ज़रा देख्नना कैसे बद्तमीज़ी से पेश आता है आपसे वो.
- कभी दुकान से कुछ बिना ख़रीदे, बस भाव पूछ कर लौटने की कोशिश करके देखना. अगर कृपा करके आपसे बद्तमीज़ी नहीं की तो आपको यूं देखेगा कि जैसे आप मच्छर हों.
- क्या आपको पता है कि आप नकली मेवे की मिठाइयां या केमिकल से बना दूध लेते हैं अपने दुकानवाले से, और उसे अपना माल बेचने के अलावा कोई मतलब नहीं होता आपसे.
- दुकानों वाले मार्केट एसोसिएशन बनाकर एक माफ़िया की तरह व्यवहार करते हैं सबसे.
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