राम लाल री राम राम जी,

Friday, March 14, 2014

चंडीगढ़ चुनाव

पवन कुमार बंसल को रेल मंत्री के पद से इसलि‍ए हटाया गया था क्‍योंकि‍ ये महाशय रेलवे के बड़े अधि‍कारि‍यों को पदोन्नत करने के लि‍ए अपने रि‍श्‍तेदारों द्वारा रि‍श्‍वत लेते पाए गए थे. पर कांग्रेस ने इन्‍हें फि‍र से चुनाव टि‍कट थमा कर क्‍या सि‍द्ध करना चाहा है कि‍ वे अपने दसि‍यों दूसरे घोटालेबाजों को भी इसी नज़र से देखती है ?

यदि‍ यही कांग्रेस की प्रति‍बद्धता है यह उस चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं को कम आंकने की हि‍माकत है. मतदाताओं को ऐसे लोगों को सबक सि‍खाना चाहि‍ए और ऐसी पार्टि‍यों को भी जो दोगली बातें करती हैं.          

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Saturday, August 31, 2013

अमृता प्रीतम का सा पाखंड

अमृता प्रीतम का जन्‍मदि‍न क्‍या आया ढेरों ब्‍लॉगों पर अमृता प्रीतम की कवि‍ताएं पैरोडि‍यों सहि‍त उग आईं. मुझे याद नहीं कि‍ उनमें से कोई ब्‍लॉग पुरूष का भी रहा हो, अलबत्‍ता सभी ब्‍लॉग कवयि‍त्रि‍यों के ही देखने को मि‍ले.

मुझे अमृता प्रीतम या उनके लेखन के प्रति‍ कोई दुराग्रह नहीं रहा पर हां,  ट्रकों के पीछे लि‍खी शेरोशायरी टाइप कवि‍ताऐं उगलने वाली उन अधेड़ कवयि‍त्रि‍यों के लि‍ए यह  वैलेंटाइन डे सा दि‍खा.

अमृता प्रीतम ने अपना पति‍ छोड़ा और लि‍व इन रि‍लेशनशि‍प अपनाई शायद अपने समय से आगे थीं वे.. और, रोने-धोने वाली रचनाएं लि‍खीं जि‍न्‍हें लोग संवेदनशील रचनाएं बताते हैं.

आज हालत ये है कि‍ जो दुखी महि‍लएं दोयम दर्जे का स्‍पाया सा लि‍खती हैं वे खुद को  अमृता प्रीतम की चेलि‍यां बताती घूमती हैं. उनकी तथाकथि‍त कवि‍ताएं पढ़ कर लगता है कि‍ वे मज़बूरी में अपने-अपने पति‍यों के साथ रह रही है. कवि‍ताओं में तो अमृता प्रीतम का  वे क्‍या ही मुक़ाबला करेंगी लेकि‍न हां, ये ज़रूर लगता है कि‍ कि‍सी और के साथ न रह पाने की भड़ास ज़रूर वो अमृता प्रीतम की आड़ में नि‍काल लेती हैं.

Saturday, December 8, 2012

रि‍टेल में FDI क्‍यों आनी ही चाहि‍ए.



रि‍टेल में FDI आनी ही चाहि‍ए क्‍योंकि‍,
  • आढ़ति‍या कि‍सान को पता भी नहीं लगने देता कि‍ उसका माल थोक वि‍क्रेता को कि‍स भाव बेच रहा है. कपड़े के नीचे हाथ से हाथ टटोल क सौदा होता है.
  • थोक वि‍क्रेता के तो पास  आढ़ति‍या, कि‍सान को फटकने भी नहीं देता.
  • कि‍सान का पैसा आराम से धीरे-धीरे देता है, कई तरह की कटौति‍यों के  बाद.
  • आपने भुगतान कि‍या नहीं कि‍ दुकान वाला आपको पहचानने से भी इन्‍कार कर देता है.
  • आपको दुकान के बाहर खड़ा रख कर खुद आराम से बैठता है, लौंडे नौकरी बजाते हैं.
  • दुकानवाला सीधे मुंह ग्राहक से बात नहीं करता. उसका काम बस गल्‍ले पर बैठना ही दि‍खाई देता है.
  • ख़रीदा हुआ कुछ वापि‍स करने की कोशि‍श की है कभी ? ज़रा देख्नना कैसे बद्तमीज़ी से पेश आता है आपसे वो.
  • कभी दुकान से कुछ बि‍ना ख़रीदे,  बस भाव पूछ कर लौटने की कोशि‍श करके देखना. अगर कृपा करके आपसे बद्तमीज़ी नहीं की तो आपको यूं देखेगा कि‍ जैसे आप मच्‍छर हों
  • क्‍या आपको पता है कि‍ आप नकली मेवे की मि‍ठाइयां या केमि‍कल से बना दूध लेते हैं अपने दुकानवाले से, और उसे अपना माल बेचने के अलावा कोई मतलब नहीं होता आपसे.
  • दुकानों वाले मार्केट एसोसि‍एशन बनाकर एक माफ़ि‍या की तरह  व्‍यवहार करते हैं सबसे.
इसके अलवा भी बहुत से कारण हैं जो और जोड़े जा सकते हैं फ़ेहरि‍स्‍त में .

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Sunday, April 29, 2012

बद्दि‍माग ठाकरों का झुंड

एक बाला साहब ठाकरे है तो दूसरा नीम चढ़ा उसी का भतीजा राज ठाकरे है. दोनों चूहों की तरह महाराष्‍ट्र में छुपे रह कर हर चार दि‍न बाद कुछ न कुछ बकवास करते रहते हैं. ये बाला साहब ठाकरे तो साहब भी कहीं से नहीं दि‍खता, पता नहीं कहां से ऐसा नाम धरे डोल रहा है.

कल तक मराठा दि‍खने वाला सचि‍न तेंडुलकर, कॉंग्रेस ने राज्‍यसभा क्‍या भेज दि‍या, अब इस बद्दि‍माग़ बुड्ढे को वही सचि‍न तेंडुलकर कार्टून नज़र आने लगा है. कभी अमि‍ताभ बच्‍चन को हड़काने चले आते हैं तो कभी ग़रीब बि‍हारि‍यों को मारपीट कर शोहदागि‍री दि‍खाते घूमते हैं.

गैर मराठि‍यों की तो छोड़ो, सवाल ये है कि‍ क्‍या हर मराठी इन दो जोकरों की बपौती है ? क्‍या हर मराठी को इनसे पूछ कर ही सॉंस लेना होगा ? कब तक लोग इनकी गुण्‍डई सहते रहेंगे ? इनके गुण्‍डों को क्‍यों नहीं महाराष्‍ट्र सरकार उठा के जेलों में ठूँस देती, कब तक  कानून व्‍यवस्‍था का डर दि‍खा कर ये यूं ही लोकतंत्र को बंधक बनाए रखेंगे. महाराष्‍ट्र की सरकारों से कहीं अच्‍छी तो मायावती नि‍कली थी जि‍सने महेन्‍द्र सिंह टि‍कैत के जाति‍सूचक अपमानजनक वाक्‍यों के चलते उसी की मॉंद में जाकर उसे गि‍रफ़्तार कर दि‍खाया था. बाद में माफ़ीनामे से जाकर जान छूटी थी टि‍कैत की. 

इन्‍हें नाहक ही इनके कद से कहीं अधि‍क बड़ा होने दि‍या गया है. बहुत हो गया, इन्‍हें लति‍याने के दि‍न आ गए हैं.
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Saturday, March 31, 2012

तेल कर रहे हैं

सरकार में बैठ के सब बस तेल ही के रेट बढ़ाने पर जुटे पढ़े हैं.न्‍यूज़ चैनल हैं कि‍ चि‍ल्‍लाने से बाज नहीं आ रहे कि‍ भागो तेल के दाम फि‍र बढ़ रहे हैं.... पर कोई जाए कहां.

Sunday, March 25, 2012

अण्‍णा को लति‍याने से बाज क्‍यों आएं ?

अण्‍णा ने आज दि‍ल्‍ली के जंतर मंतर पर लोकपाल बि‍ल की मांग व वि‍स्‍लब्‍लोअर बि‍ल के समर्थन में फि‍र एक दि‍न का प्रदर्शन कि‍या. जो मीडि‍या कल तक अण्‍णा के गुण गाता नहीं अघा रहा था आज उसे प्रदर्शन में कमि‍यों हीं कमि‍यां नज़र आईं. अण्‍णा के काम में कोई ग्‍लैमर नज़र नहीं आया उसे.

मीडि‍या भी उसी तरह का गि‍रगि‍ट साबि‍त हो रहा है जि‍सके ख़ि‍लाफ़ अण्‍णा आज तक लड़ते रहे हैं.
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Tuesday, October 26, 2010

रे ठण्ड कर दी.

भगवान जी, पहले तो तुमने बरसातें एक - डेढ़ महीने ज़्यादा कर दीं अब, लोगों को डेंगू-चिकुनगुनिया सुंघाते घूम रहे हो ! आख़िर तुम चाहते क्या हो ?

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रेडि‍यो टीवी से दुनि‍या का पता चलता रहता है. कभी कभी अख़बार मि‍ल जाता है तो वो भी पढ़ लेता हूं.