टाइम्स आफ़ इंडिया, नई दिल्ली, 30 जून, 2010
राम लाल री राम राम जी,
Wednesday, June 30, 2010
Sunday, June 13, 2010
कहीं आज जाकर हल हुई है भोपाल गैस त्रासदी
शीर्षक पर अगर भरोसा न हो तो आज कोई भी टी.वी. न्यूज़ चैनल लगा कर देख लीजिए. भोपाल गैस त्रासदी की समस्या हल हो गई है इसीलिए इसके बारे में कहीं कोई ख़बर नहीं है. आज वहां इससे भी बड़ी दूसरी समस्याएं दिखाई जा रही हैं जैसे फुटबाल वर्ल्ड कप, मोदी-नीतिश समस्या, फिर कहीं चोरी हत्या बगैहरा-बगैहरा हुई हैं...
अब, अगले 25 साल बाद भोपाल गैस त्रासदी फिर से बहुत बड़ी समस्या होने वाली है जब कोई ऊपरी अदालत सभी मुज़रिमों की 2-2 साल क़ैद की सज़ा पर मुहर लगा देगी. आइए इंतज़ार करें.
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Thursday, June 10, 2010
हम डंडे के पीर हैं.
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सूखा पड़ता है तो हम लाओ-लाओ चिल्लाते हैं, बाढ़ आती है तो बचाओ-बचाओ. लेकिन हम सीखने से तब तक इन्कार करते रहते हैं जब तक कोई और चारा ही न बचे. अब ऊपर के समाचार को ही देख लीजिए, देश में हर जगह पानी का कमोवेश यही हाल है पर हम Rain Water Harvesting से आंखें चुराए बैठे हैं....नि:संदेह हम डंडे की इंताज़ार में हैं.
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Wednesday, June 9, 2010
Sunday, June 6, 2010
खेल खेल में
मणिशंकर अय्यर ने खेलों को जंब्बूरी कहा तो मंत्री पद खोना पड़ा. पर सच तो ये है कि भारत जैसे विकासशील देश में मूलभूत सुविधाएं मुहय्या करवाने का यही एक बहाना बचा है. चीन व कोरिया इसके जीवंत उदाहरण हैं जहां ओलंपिक खेलों के चलते ढेरों काम हुआ.
कामनवेल्थ खेलों के चलते दिल्ली में जो काम हो रहा है वह केवल दूसरी बार शुरू हुआ है, पहली बार 1982 में एशियाई खेलों के दौरान हुआ था. अब अगली बार शायद भारत में ओलम्पिक होने पर ही आगे कुछ हो. पर भारत में ज़रूरी है कि ये खेल महानगरों से दूर छोटे शहरों में भी ले जाये जाएं.
कामनवेल्थ खेलों के चलते दिल्ली में जो काम हो रहा है वह केवल दूसरी बार शुरू हुआ है, पहली बार 1982 में एशियाई खेलों के दौरान हुआ था. अब अगली बार शायद भारत में ओलम्पिक होने पर ही आगे कुछ हो. पर भारत में ज़रूरी है कि ये खेल महानगरों से दूर छोटे शहरों में भी ले जाये जाएं.
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Saturday, June 5, 2010
इसे आप क्या कहेंगे

ऊपर वाले चित्र में:- एक पार्क के बाहर, सुबह की सैर को आने वाले लोगों के लिए एक आदमी मिल्क शेक बेच रहा है. मिल्क शेक की मिक्सी पोर्टेबल जैनरेटर से चलाता है वह.
नीचे वाले चित्र में:- उसी मिल्क शेक वाले के सामने सड़क के पार, लोकल मार्केट के बाहर एक स्थाई बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है "शिव भंडारा, हर सोमवार दोपहर 1 से 2.30"...
शहरी मध्यवर्ग के बारे में सोचता हूं कि आजकल, ये कुछ ठीक-ठाक ही नहीं कमा रहा (?) कि जहां एक ओर अब यह इतना मंहगा मिल्क शेक पी लेता है वहीं दूसरी ओर, यह इतना मंहगा सामान भी ख़रीद लेता है कि इसे की गई बिक्री के मुनाफ़े में से दुकानदार अब लंगर भी चला लेते हैं...!!!
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- राम लाल
- रेडियो टीवी से दुनिया का पता चलता रहता है. कभी कभी अख़बार मिल जाता है तो वो भी पढ़ लेता हूं.