76 पुलिस वालों को यूं घेर कर मार डालने के बावजूद क्या सरकार को ये लगता है कि नक्सलियों को हराने के लिये उसके पास कोई नीति है ? या यूं ही गाल बजाने से काम चलाते रहेंगी सरकारें !
सरकारों को याद रखना चाहिये कि पुलिस में केवल रोटी की चाह में भर्ती होने वालों की संख्या घट रही है. अब सिपाही भी खाते पीते घरों से आते हैं और वे यूं गुफाकाल के हथियारों और सुविधाओं के साथ जीने को तैयार नहीं हैं. चेतने का समय निकलने नहीं देना चाहिये.
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रामलाल भाई, बात नीति की नहीं, नीयत की है, जब नीयत ठीक हो तो नीति तो फटाफट बन जातीं है.
ReplyDeleteसरकार के अन्दर बाहर तथा चीन के दलाल और एनजीओ वाले सांप बहुत असरकारी है, सबसे पहले इनके फन कुचले जाने जरूरी हैं..
चीन में मिलिट्री की ट्रेनिंग पाये, नक्सलवाद के जनक कनु सान्याल ने अपने पापों से घबरा कर बुढापे में आत्महत्या कर ली थी.
जो लोग नक्सलवाद की रुमानियत के नशे में मस्त है, उन्हें भी जल्दी अक्ल आजाय तो उन्ही का भला होगा
राकेश जी एक दम सही कहा है आपने, ये झोलेवाले वहां जहां-जहां भी पहुंचे वहीं बंटाधार. ये समाजवाद के नाम पर ग़रीब को ग़रीब ही बनाए रखने में विश्वास रखते हैं ताकि वह इनके रहमोकरम पर बना रहे.
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