किसी टी.वी. चैनल पर देखा कि एक मुस्लिम महिला का कहना था कि यदि मोहम्मद साहब की तस्वीर बना कर छीछालेदर की कोशिश की भी गई है तो इसे सिरे से नकार देना भर ही काफी है, नाहक तूल क्यों देना, पर पाकिस्तान ने फ़ेसबुक साइट बैन कर दी. फिर लगा कि लोहा गर्म है...सो लगे हाथ यूट्यूब साइट भी बंद कर दी. फिर याद आया कि अरे! ट्विट्टर साइट तो रह ही गई...इसलिए सरकार शाम होते न होते वह फिर लौट के आई और इस पर भी ताला ठोक, दांत फाड़ते हुए चलते बनी.
इधर, भारत में तमाम हिन्दू देवी-देवताओं की तो एक ज़माने से बाक़ायदा फ़िल्में बनती रही हैं. नारद मुनि जैसे देवताओं को तो लोग कामेडियन के ही रूप में देखने के आदि हो गए हैं. दोनों समाज कितना अलग सोचते हैं. अच्छा लगता है यह पाकर कि हम सोचने और बोलने के लिए आज़ाद है....और हां, हमारे यहां इस तरह की वेबसाइट्स बैन करने का रिवाज़ भी नहीं है.
राम लाल री राम राम जी,
Friday, May 21, 2010
Saturday, May 15, 2010
RTI की असफलता के कारण
RTI की असफलता के कारणों में एक यह भी है कि कुछ लोगों ने तमाम ऊल-जुलूल क़िस्म की जानकारियां 10-10 रूपये में महज इसलिए मांगने का 'धंधा' अपना रखा है कि बाबुओं की नकेल कस कर रखी जा सके.
इस तरह के लोगों ने बाबुओं को 'डराने' वाले नामों की संस्थाएं बना ली हैं जिनमें एंटी-करप्शन, सिविल, विजीलेंस, कांग्रेस और भी न जाने इसी तरह के कितने ही शब्द जोड़ रखे हैं. इनकी अज़ियों में सूचना मांगने का लहज़ा धमकी भरा होता है मानो कह रहे हों कि बच्चू अब तुम्हारी नौकरी खा जाएंगे.
इस धंधे के ये माहिर, एक ही अर्ज़ी में इतनी तरह की जानकारी मांगते हैं कि अगर सभी कर्मचारी 24ओं घंटे भी जुटे रहें तो भी वह जानकारी 30 दिन में तो क्या सालों में भी नहीं दी जा सकती.
ऐसे में, पहले से ही मोटी चमड़ी वाले बाबू लोग भी हर तरह के हथकंडे अपना कर RTI सूचनाएं न देने या फिर आड़ी-तिरछी सूचनाएं देने के हथकंडे अपनाने से नहीं चूकते. इस सबके चलते, गेहूं के साथ-साथ घुन भी पिस रहा है.
Friday, May 14, 2010
ब्लागरत्रयी ज्ञान-शुक्ल-समीर... हुआ क्या है!
मैंने तीनों की पोस्ट की पढ़ीं.
ज्ञान जी ने जो समझा वह लिखा. (अपने विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार हम सभी को है भी.) उनकी भाषा में न तो कहीं कोई दुराग्रह/पूर्वाग्रह मैंने पाया. न ही, उनकी भाषा में कोई अभद्रता है. अलबत्ता, उनकी पोस्ट में, जहां एक ओर शुक्ल जी के लिए बड़े भाई का सा निहित अधिकार झलकता है वहीं इस लेख में समीर जी के लिए कोई ऐसी बात नहीं दिखी कि वे उनका अपमान करना चाहते थे.
जवाब में शुक्ल जी ने एक बेहतरीन परिपक्व (वे भाषा के धनी हैं) पोस्ट लिखी है. हां, समीर जी अपनी पोस्ट में आहत ज़रूर दिखे पर उन्होंने भी अपना बड़प्पन नहीं खोया, उनकी भाषा की शालीनता में उनका कवि साफ झलकता है.
इस बीच, बहती गंगा में हाथ धोने निकले ढेरों कुकुरमुत्ते जहां तहां दिखाई देने लगे, संभ्रांत भाषा की सारी हदें लांघ, एक से एक ओछे वक्तव्य देते हुए. यद्यपि कई मित्रों ने, मित्रधर्मसम्मत, किसी भी बात को तूल न देने की अनुनय अवश्य की, यह पढ़कर अच्छा लगा.
हिन्दीधर्मियों को अभी दिल बड़ा करने का गुण सीखने में समय लगेगा. मैं इन तीनों की व्यक्तिगत विचाराभिव्यक्ति का समान आदर करता हूं व मुझे इनके बीच कोई अंतर नहीं लगता. हम में दूसरों के विचारों के आदर का माद्दा होना ही चाहिये. पर, शायद हम हिन्दीभाषी बहसों के बिना रह ही नहीं सकते (हो सकता है हम इसे कमज़ोरी के बजाय ताक़त समझते हैं) .
ज्ञान जी ने जो समझा वह लिखा. (अपने विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार हम सभी को है भी.) उनकी भाषा में न तो कहीं कोई दुराग्रह/पूर्वाग्रह मैंने पाया. न ही, उनकी भाषा में कोई अभद्रता है. अलबत्ता, उनकी पोस्ट में, जहां एक ओर शुक्ल जी के लिए बड़े भाई का सा निहित अधिकार झलकता है वहीं इस लेख में समीर जी के लिए कोई ऐसी बात नहीं दिखी कि वे उनका अपमान करना चाहते थे.
जवाब में शुक्ल जी ने एक बेहतरीन परिपक्व (वे भाषा के धनी हैं) पोस्ट लिखी है. हां, समीर जी अपनी पोस्ट में आहत ज़रूर दिखे पर उन्होंने भी अपना बड़प्पन नहीं खोया, उनकी भाषा की शालीनता में उनका कवि साफ झलकता है.
इस बीच, बहती गंगा में हाथ धोने निकले ढेरों कुकुरमुत्ते जहां तहां दिखाई देने लगे, संभ्रांत भाषा की सारी हदें लांघ, एक से एक ओछे वक्तव्य देते हुए. यद्यपि कई मित्रों ने, मित्रधर्मसम्मत, किसी भी बात को तूल न देने की अनुनय अवश्य की, यह पढ़कर अच्छा लगा.
हिन्दीधर्मियों को अभी दिल बड़ा करने का गुण सीखने में समय लगेगा. मैं इन तीनों की व्यक्तिगत विचाराभिव्यक्ति का समान आदर करता हूं व मुझे इनके बीच कोई अंतर नहीं लगता. हम में दूसरों के विचारों के आदर का माद्दा होना ही चाहिये. पर, शायद हम हिन्दीभाषी बहसों के बिना रह ही नहीं सकते (हो सकता है हम इसे कमज़ोरी के बजाय ताक़त समझते हैं) .
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Wednesday, May 12, 2010
मज़ाकिया फ़तवे
वह भी ज़रूर एक समय रहा होगा जब भाषाई ज्ञान की सीमाओं के चलते पवित्र क़ुरान को पढ़ने-समझने समझने वाले बहुत कम लोग रहे होंगे. उस समय, भाषा के जानकार मुल्ला-क़ाजी अपनी समझ के अनुसार इसके अर्थ आम लोगों को बताया करते थे. आज समय बदल गया है, मुल्ला-क़ाजियों के अलावा भी अनगिनत भाषाविद् हैं जो कुरान को कहीं बेहतर पढ़ और समझ सकते हैं.
ऐसे में अच्छा होगा कि फ़तवे ज़ारी करने वाले मेहरबान लोग, फ़तवों के साथ यह भी बता दिया करें कि क़ुरान में ठीक फ़लां जगह यह लिखा है ताकि उनके फ़तवों की पुष्टी की जा सके.
यही हाल एक समय संस्कृत जानने वालों का था, जो आम हिन्दुओं को उनके धर्मग्रंधों के ऐसे अर्थ बताते थे जिनसे उनका अपना उल्लू सीधा होता हो. लेकिन आज उनकी कोई नहीं सुनता. मुस्लिम समुदाय को भी इस्लाम के इन अनुवादकों के बारे में आज गंभीरता से सोचना होगा.
ऐसे में अच्छा होगा कि फ़तवे ज़ारी करने वाले मेहरबान लोग, फ़तवों के साथ यह भी बता दिया करें कि क़ुरान में ठीक फ़लां जगह यह लिखा है ताकि उनके फ़तवों की पुष्टी की जा सके.
यही हाल एक समय संस्कृत जानने वालों का था, जो आम हिन्दुओं को उनके धर्मग्रंधों के ऐसे अर्थ बताते थे जिनसे उनका अपना उल्लू सीधा होता हो. लेकिन आज उनकी कोई नहीं सुनता. मुस्लिम समुदाय को भी इस्लाम के इन अनुवादकों के बारे में आज गंभीरता से सोचना होगा.
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Sunday, May 9, 2010
मम्मियों का डे
सुबह-सुबह एग्रीगेटर देखकर पता चला कि केवल आज मदर्स डे है. भारतीय शहरी मध्यवर्ग को अफ़ीम का एक डोज़ और. ब्लागरों को पोस्ट लिखने का एक बहाना और. हमारे यहां तो भई हर रोज़ ही माता-पिता व परिवार का रहता आया है, हल्ला किस बात का.
Monday, May 3, 2010
Honor Killings का सच.
एक और मां-बाप ने, अख़बार में काम करने वाली अपनी ही बच्ची निरूपमा पाठक समाजी ढकोसले के चलते मार दी. सोचता हूं कि कैसे मां बाप हैं ये और कैसा है इनका ये तथाकथित सामाजिक सम्मान. बच्चियों के भ्रूण-हत्यारे ही आगे चलकर ऐसे मां-बाप हो सकते हैं. यह भी सोचता हूं कि इनके हास्यास्पद तथाकथित सामाजिक सम्मान की शिकार इनकी ये निरीह अपनी ही बेटियां क्यों होती हैं, अपने बेटे क्यों नहीं.
यह भी सोचता हूं कि कैसे क्रूर होते होंगे ऐसे मां-बाप जो फूलों की तरह पाल कर अपनी ही बेटियों को यूं मार देने का जिगरा रखते हैं. मैं नहीं जानता कि क्रूरतम जानवर भी ऐसा कर सकते हैं या नहीं.
उफ़्फ़ ये डरपोक और कायर लोग.
यह भी सोचता हूं कि कैसे क्रूर होते होंगे ऐसे मां-बाप जो फूलों की तरह पाल कर अपनी ही बेटियों को यूं मार देने का जिगरा रखते हैं. मैं नहीं जानता कि क्रूरतम जानवर भी ऐसा कर सकते हैं या नहीं.
उफ़्फ़ ये डरपोक और कायर लोग.
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Sunday, May 2, 2010
अफ़ग़ानिस्तान के लिए क्रिकेट बहुत ज़रूरी है
आदिकाल से ही विभिन्न जनजातियों में बंटे चले आ रहे अफ़ग़ानिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में बांध सकने के लिए आज केवल क्रिकेट ही सक्षम दिखता है. यहां राजनीति व जनजातियों की अपनी-अपनी सीमाएं रही हैं जिनके चलते अफ़ग़ानिस्तान कभी भी लड़ाकू क़ौम से ऊपर उठ कर एक समग्र समाज के रूप में नहीं उभर सका है.
जनजातीय खेलों के अतिरिक्त फुटबाल अफ़ग़ानिस्तान का अन्य लोकप्रिय खेल है किन्तु कड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के चलते इस खेल में कोई बहुत बड़ी उपलब्धि पाना इसके लिए कठिन रहा है . क्रिकेट में यदि अफ़ग़ानिस्तान अच्छा प्रदर्शन करता है तो यह खेल इस राष्ट्र को एक सू़त्र में बांधने में एक महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध हो सकता है.
जनजातीय खेलों के अतिरिक्त फुटबाल अफ़ग़ानिस्तान का अन्य लोकप्रिय खेल है किन्तु कड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के चलते इस खेल में कोई बहुत बड़ी उपलब्धि पाना इसके लिए कठिन रहा है . क्रिकेट में यदि अफ़ग़ानिस्तान अच्छा प्रदर्शन करता है तो यह खेल इस राष्ट्र को एक सू़त्र में बांधने में एक महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध हो सकता है.
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Saturday, May 1, 2010
ग़ैर शादीशुदा होने से चिड़चिड़ापन बढ़ता है.
शादी न होने के तीन कारण हो सकते हैं; शारीरिक सौंदर्य का अभाव, सामाजकि-आर्थिक/ व्यवहारिक-बौद्धिक अक्षमताएं या फिर सभिज्ञ निर्णय.
माधुरी गुप्ता सरीखे लोगों की सिविल सेवा की आकांक्षा जब पूर्ण नहीं होती व दोयम दर्ज़े की नौकरी करनी पड़ती है तो वे खुद को दूसरों के बराबर या उनसे भी अधिक सक्षम सिद्ध करने के हास्यास्पदात्मक मौक़े ढूंढते रहते हैं.
ऐसे में, शादीशुदा न होना एकाकीपन और बढ़ा देता है जिससे व्यक्ति भड़ास निकालने के नए नए तरीक़े ढूंढता रहता है. माधुरी गुप्ता को देशद्रोह तक में कोई दोष नहीं दिखा.
माधुरी गुप्ता सरीखे लोगों की सिविल सेवा की आकांक्षा जब पूर्ण नहीं होती व दोयम दर्ज़े की नौकरी करनी पड़ती है तो वे खुद को दूसरों के बराबर या उनसे भी अधिक सक्षम सिद्ध करने के हास्यास्पदात्मक मौक़े ढूंढते रहते हैं.
ऐसे में, शादीशुदा न होना एकाकीपन और बढ़ा देता है जिससे व्यक्ति भड़ास निकालने के नए नए तरीक़े ढूंढता रहता है. माधुरी गुप्ता को देशद्रोह तक में कोई दोष नहीं दिखा.
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- राम लाल
- रेडियो टीवी से दुनिया का पता चलता रहता है. कभी कभी अख़बार मिल जाता है तो वो भी पढ़ लेता हूं.