राम लाल री राम राम जी,

Tuesday, October 26, 2010

रे ठण्ड कर दी.

भगवान जी, पहले तो तुमने बरसातें एक - डेढ़ महीने ज़्यादा कर दीं अब, लोगों को डेंगू-चिकुनगुनिया सुंघाते घूम रहे हो ! आख़िर तुम चाहते क्या हो ?

Wednesday, October 20, 2010

कसाब को आज़ाद कर दो


सउदी अरब के एक बिगड़े नवाबज़ादे ने 15 फ़रवरी को इंग्लैण्ड में अपने नौकर की हत्या कर दी और न्यायालय ने आज उसे उम्रक़ैद, जिसमें कम से कम 20 वर्ष की जेल तय, की सज़ा सुना दी. यह शख़्स साउद अब्दुलअज़ीज़ बिन नासेर अल साउद है जो कि साउदी अरब के सुल्तान अबदुल्ला के भाई का पोता है.

एक हम है कि आज पूरे दो साल बाद भी डेढ़ कौड़ी के कसाब से न्यायालयों के कैमरों पर थुकवाते घूम रहे हैं. इसमें सबसे मज़े की बात ये है कि हमारा क़ानून उन्हीं अंग्रेज़ों का बनाया हुआ है जो 9 महीने में न्याय करके परे मारता है और इस बात की चिंता तक नहीं करता कि साउदी अरब इंग्लैण्ड का "आतंक के विरूद्ध दोस्त" है या, अब उसे तेल मिलेगा कि नहीं.

इधर हम हैं कि पता नहीं पाकिस्तान से किस तेल की उम्मीद में एक सामूहिक नरसंहारी को टुकड़े डाले चले जा रहे हैं. अरे भई अगर फ़ैसला नहीं कर पा रहे तो इसे आज़ाद कर दो (लोग अपने आप देख लेंगे).
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Tuesday, October 19, 2010

इन्कम टैक्स के छापे पड़े

इन्कम टैक्स के छापों से, उम्मीद करनी चाहिये कि राष्ट्रमंडल खेलों में हुए हज़ारों करोड़ के घपलों से पर्दा उढेगा. हालांकि यह काफी देर से उठाया गया क़दम है क्योंकि इस बीच, धांधलेबाज़ों ने सारा माल सैट तो कर ही दिया होगा, सबूत भी कहां बचे होंगे.                                                                 00000000000000

Tuesday, October 5, 2010

वोडाफ़ोन से टैक्स ले लिया ?

हाल ही में समाचार पढ़ा कि बाम्बे हाई कोर्ट ने 12,000 करोड़ रूपये से ज़्यादा टैक्स के केस में आदेश वोडाफ़ोन के विरूद्ध पास कर दिया. सब टी0वी0 चैनलों ने भी खूब धमाल मचाया. क्या इन्कम टैक्स विभाग ने वोडाफ़ोन से ये टैक्स वसूल कर लिया ? सवाल ही नहीं उठता. सिस्टम ही ऐसा है कि कोई न कोई स्टे मिल ही जाएगा. कोई और छोटा आदमी होता तो टैक्स वाले उसकी जान खा गए होते अब तक.
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Sunday, October 3, 2010

भारत के बुद्धिजीवी.

10,000 पन्नों के अदालती निर्णय आने की ख़बर आते ही सभी टी0 वी0 चैनलों पर तरह-तरह के रंग-बिरंगे बुद्धिजीवियों की कतारें उग आई, जो गला फाड़ फाड़ कर हम मूढ़ प्राणियों को आज तक उस फ़ैसले का मतलब समझाए चले जा रहे हैं जबकि, इनमें से किसी भी चौधरी ने अदालती निर्णय ख़ुद ही आज तक नहीं पढ़ा है. लानत है.

Thursday, September 9, 2010

हिन्दी में नोट यूं कूटे जा रहे हैं आजकल.

ई-मेल से मिलने वाले फ्राडियों के संदेश आजतक तो अंग्रेज़ी में आते थे. आज यह पहली बार है कि मुझे किसी ने हिन्दी में बताया कि मैं करोड़पति हो गया हूं. विश्वास न हो तो नीचे दिया मेल देखिये. इससे एक बात तो तय है कि हिन्दी आज इतनी लोकप्रिय हो गई है कि विदेशों में बैठे अहिन्दीभाषी फ्राड लोग तक इसे नहीं नकार पा रहे और अब हिन्दी में बता रहे हैं कि भइय्ये आओ तुमने नोट ही नोट जीत मारे हैं :-). यह बात अलग है कि बेचारा अभी गूगल ट्रांसलिट्रेशन जैसे किसी अनुवाद साफ़्टवेयर से काम चला रहा है....with regards = साथ सादर...


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-----Original Message-----
From: Info@Microsoft.co.uk
To: info@yahoo.com
Sent: Wed, Sep 8, 2010 3:55 am
Subject: Winning number...........YM09788.

आप है जीता 750,000.00GBP इस महीने में YAHOO MSN LOTTERY GAME दावा करने 

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Email: mr.jamescole1988@hotmail.com

के साथ अपने नाम, मोबाइल नंबर ,व्यवसाय ,राष्ट्रीयता , देश और.

बिग बधाई हो! फिर एक बार.

साथ सादर,

 Mrs.Lisa White.

Saturday, September 4, 2010

डर गई बेचारी सायना नेहवाल..

बेचारी सायना नेहवाल यह सच बोल कर डर गई कि भारत में राष्ट्रमंडल खेलों की सुविधाएं व तैयारियां अंतर्राष्ट्रीय स्तर की नहीं हैं. इसीलिए उसने लौटती डाक से ही कह मारा कि "माफ़ करना, सब बहुत बढ़िया है". वहीं दूसरी ओर ढेर सारे टोपीबाज़ झूठ बोलते नहीं अघा रहे कि सब ठीक-ठाक ही नहीं है बल्कि दुनिया को शर्मसार कर देने के स्तर का भी है.

कोई बात नहीं सायना, मैं तुम्हारी दुविधा समझ सकता हूं. तुम अपना काम करो देश को तुम पर गर्व है.

Monday, August 30, 2010

पाक आतंकवाद है क्रिकेट फ़िक्सिंग का कारण

यदि पाकिस्तान आतंकवाद को यूं पनाह न देता तो आज भी दूसरे देशों की टीमें क्रिकेट खेलने पाकिस्तान आया करतीं. जिसके चलते निश्चय ही क्रिकेट व इसके खिलाड़ियों को आर्थिक लाभ मिलता रहता.

लेकिन इसके अभाव में आज, पाकिस्तानी खिलाड़ी जब कभी भी कोई इक्का-दुक्का मैच खेलने बाहर जाते हैं तो उनका एक ही उद्देश्य होता है कि कैसे ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाया जाए... मैच फ़िक्सिंग सबसे आसान रास्ता है.
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Saturday, August 28, 2010

रहमान की दुकान का फीका पकवान.

राष्ट्रमंडल खेलों के लिए बनाया रहमान का गाना इतने घटिया दर्ज़े का है कि हैरानी हो रही है कि क्या यही वो आदमी है जिसने आस्कर जीता है ! लग रहा था कि इतनी कंट्रोवर्सी के बाद शायद कम से कम एक हिट गाना तो शायद कुछ तसल्ली देगा... फिर भी शुभकामनाएं.

Sunday, August 15, 2010

अब लालकि़लेबाज़ी बंद कर ही दो.

15 अगस्त को लाल क़िले से प्रधान मंत्री के भाषण के समय जो लोग वहां होते हैं वे हैं:-  सरकार के लोग और सरकारी  कर्मचारी, विदेशी राजनयिक व स्कूलों के बच्चे. इनमें से कोई भी अपनी मर्ज़ी से खुशी-खुशी सुबह साढ़े 6 बजे लाल क़िले नहीं पहुंचा होता.

अब आज, जब आम आदमी किसी प्रधानमंत्री का भाषण सुनने अपने आप जाता ही नहीं तो क्यों ये जंबूरी चालू रखी जा रही है. सबसे बड़ी बात, इससे वोट भी नहीं मिलते.

आख़िर कौन कहेगा कि राजा नंगा है.
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Sunday, July 18, 2010

स्वास्थ्य बीमा के सच

भारत में,  सरकारी बीमा कंपनियों और प्राइवेट बीमा कंपनियों में बस एक ही फर्क है. सरकारी बीमा कम्पनियाँ क्लेम देने में भ्रष्ट हैं तो प्राइवेट बीमा कम्पनियाँ, बीमा करने में भी भ्रष्ट हैं.

प्राइवेट बीमा कम्पनियाँ सस्ते से सस्ता बीमा बेचने में होड़ करती हैं और क्लेम के वक़्त झट से नट जाती हैं कि फ़लां- फ़लां कारणों के चलते क्लेम दिया ही नहीं जा सकता. सरकारी बीमा कंपनियों के टॉप के बाबू निकम्मे ही नहीं हैं एकदम खाऊ भी हैं यही वह सबसे बड़ा कारण है कि सभी चारों सरकारी बीमा कम्पनियाँ केवल निवेश के छोटे-मोटे मुनाफे पर ही चल रही हैं अन्यथा प्रतिवर्ष १०० रूपये के प्रीमियम पर १०० रूपये से ज्यादा के क्लेम दे रही हैं.


१९७१ में साधारण बीमा उद्योग का राष्ट्रीयकरण भ्रष्टाचार व अव्यवस्था से उपजे घाटे के ही कारण किया गया था. आज फिर स्थितयां १९७१ जैसी ही हैं पर सरकार है कि कानों में रुई डाले सो रही है. हालत ये है कि लाखों करोड़ के इस पूरे उद्योग (जीवन बीमा सहित)  को वित्त मंत्रालय में बस एक संयुक्त सचिव देखता है, मंत्री को तो इसके बारे में कोई हवा तक नहीं रहती कि उसकी नाक के नीचे हो क्या रहा है.  IRDA के बारे में जितना कम कहा जाए उतना अच्छा.

कुछ साल पहले वित्त मंत्रालय का एक ऐसा ही बड़ा बाबू आयं-बायं स्थानान्तरण की नीति बना चलता बना, जिसे सरकारी कम्पनियाँ आज भी भरत की तरह राम-खड़ाऊँ समझ पूज रही हैं, जिसके चलते रहा-सहा व्यवसाय भी प्राइवेट बीमा कंपनियों की झोली में बैठे-ठाले चला जा रहा है क्योंकि सरकारी कम्पनियों के जो लोग जी-जान लगाकर सालों की मेहनत से इन क्लाएंटों को कम्पनी से जोड़े रखते थे उनका स्थानान्तरण, पालिसी के नाम पर दूर-पार कर दिया जाता है. यही कारण है कि सक्षम लोग सरकारी बीमा कम्पनियाँ छोड़ कर चले जा रहे हैं और नालायक आज इन कंपनियों को चला रहे हैं. बचे -खुचे डायरेक्ट  रिक्रूट अधिकारी  शाखा/मंडल प्रबंधन बनने के इच्छुक नहीं हैं लेकिन प्रोमोटी अधिकारी  कूद-कूद कर आगे आ रहे हैं ताकि कंपनियों को जी भर कर लूटा जा सके व ऊपर वालों को हिस्सा पहुंचाया जा सके. प्राइवेट बीमा कम्पनियाँ चुन-चुन कर केवल मुनाफे वाला बीमा कर रही हैं, सरकारी बीमा कम्पनियाँ बाक़ी बचा-खुचा घाटे का सौदा ले रही हैं. अंतर समझने के लिए, कभी किसी प्राइवेट बीमा कंपनी से अपने वाहन का वैधानिक 'Third Party Only' बीमा करवाने की कोशिश करके देखिएगा :-))

सबसे मज़े की बात तो ये है कि हरियाणा काडर के जिस बड़े बाबू ने सरकारी बीमा कंपनियों  के लिए यह स्थानांतरण  पालिसी बनाई थी उसके बारे में कहा जाता है कि वह कुछ ही महीनों  के छोटे से अरसे के लिए वित्त मंत्रालय में नियुक्त रहा और  प्राइवेट बीमा कंपनियों से मोटी रक़म लेकर सरकारी बीमा कंपनियों के लिए स्थानांतरण पालिसी बना कर अपने रास्ते चलता बना. ये बात अलग है कि बाद में CBI ने उसे धर दबोचा था. राम जाने उसके बाद क्या हुआ.

यही कहानी TPAs (third party administrators) की भी है. सरकारी बीमा कंपनियों ने प्रशासनिक व्यय कम करने के नाम पर ३०% तक के कमीशन पर इन्हें नियुक्त किया. इन्होंने बीमित लोगों को काल-सेंटर के नंबर थमा अस्पतालों से यारी गाँठ ली. आम के आम और गुठलियों के दाम. प्रीमियम में से वैध कमीशन और अस्पताओं से भी बढ़ा-चढ़ा कर पेश किये जाने वाले बिलों में से कट. हींग लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा चल निकला पर बकरे की मान कब तक ख़ैर मनाती...डूबती लुटिया के चलते बीमा कंपनियों ने बचाओ बचाओ चिल्लाना शुरू कर दिया है ....यह बात दीगर है कि इस सबका खामियाजा अगर किसी को भुगतना है तो वह बस उपभोक्ता है. स्वस्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में भारत को अमरीका की नहीं, ब्रिटेन की नीति अपनाने की आवश्यकता है.
                                                   ooooooo


लिखी तो ये टिपण्णी इस ब्लॉग के लिए थी
http://upchar.blogspot.com/2010/07/blog-post_1228.html">स्वास्थ्य-सबके लिए पर blogger.com ने प्रकाशित नहीं की ये कह कर कि टिपण्णी बहुत बड़ी है. इसलिए उसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर hyperlink दिया लेकिन बाद में पाया कि वह टिपण्णी वहां प्रकाशित भी हो गयी.

यूं करें रूपये के चिन्ह को कंप्यूटर पर टाइप.

साभार-टाइम्स आफ़ इंडिया-18.7.2010

Sunday, June 13, 2010

कहीं आज जाकर हल हुई है भोपाल गैस त्रासदी



शीर्षक पर अगर भरोसा न हो तो आज कोई भी टी.वी. न्यूज़ चैनल लगा कर देख लीजिए. भोपाल गैस त्रासदी की समस्या हल हो गई है इसीलिए इसके बारे में कहीं कोई ख़बर नहीं है. आज वहां इससे भी बड़ी दूसरी समस्याएं दिखाई जा रही हैं जैसे फुटबाल वर्ल्ड कप, मोदी-नीतिश समस्या, फिर कहीं चोरी हत्या बगैहरा-बगैहरा हुई हैं...

अब, अगले 25 साल बाद  भोपाल गैस त्रासदी फिर से बहुत बड़ी समस्या होने वाली है जब कोई ऊपरी अदालत सभी मुज़रिमों की 2-2 साल क़ैद की सज़ा पर मुहर लगा देगी. आइए इंतज़ार करें.
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Thursday, June 10, 2010

हम डंडे के पीर हैं.

समाचार को पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करें

सूखा पड़ता है तो हम लाओ-लाओ चिल्लाते हैं, बाढ़ आती है तो बचाओ-बचाओ. लेकिन हम सीखने से तब तक इन्कार करते रहते हैं जब तक कोई और चारा ही न बचे. अब ऊपर के समाचार को ही देख लीजिए, देश में हर जगह पानी का कमोवेश यही हाल है पर हम Rain Water Harvesting से आंखें चुराए बैठे हैं....नि:संदेह हम डंडे की इंताज़ार में हैं.
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Sunday, June 6, 2010

खेल खेल में

मणिशंकर अय्यर ने खेलों को जंब्बूरी कहा तो मंत्री पद खोना पड़ा. पर सच तो ये है कि भारत जैसे विकासशील देश में मूलभूत सुविधाएं मुहय्या करवाने का यही एक बहाना बचा है. चीन व कोरिया इसके जीवंत उदाहरण हैं जहां ओलंपिक खेलों के चलते ढेरों काम हुआ.

कामनवेल्थ खेलों के चलते दिल्ली में जो काम हो रहा है वह केवल दूसरी बार शुरू हुआ है, पहली बार 1982 में एशियाई खेलों के दौरान हुआ था. अब अगली बार शायद भारत में ओलम्पिक होने पर ही आगे कुछ हो. पर भारत में ज़रूरी है कि ये खेल महानगरों से दूर छोटे शहरों में भी ले जाये जाएं.
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Saturday, June 5, 2010

इसे आप क्या कहेंगे


ऊपर वाले चित्र में:- एक पार्क के बाहर, सुबह की सैर को आने वाले लोगों के लिए एक आदमी मिल्क शेक बेच रहा है. मिल्क शेक की मिक्सी पोर्टेबल जैनरेटर से चलाता है वह.

नीचे वाले चित्र में:- उसी मिल्क शेक वाले के सामने सड़क के पार, लोकल मार्केट के बाहर एक स्थाई बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है "शिव भंडारा, हर सोमवार दोपहर 1 से 2.30"...

शहरी  मध्यवर्ग के बारे में सोचता हूं कि आजकल, ये कुछ ठीक-ठाक ही नहीं कमा रहा (?) कि जहां एक ओर अब यह इतना मंहगा मिल्क शेक पी लेता है वहीं दूसरी ओर, यह इतना मंहगा सामान भी ख़रीद लेता है कि इसे की गई बिक्री के मुनाफ़े में से दुकानदार अब लंगर भी चला लेते हैं...!!!

Friday, May 21, 2010

वाह रे पाकिस्तान तेरी ट्विट्टरी की क्या कहने

किसी टी.वी. चैनल पर देखा कि एक मुस्लिम महिला का कहना था कि यदि मोहम्मद साहब की तस्वीर बना कर छीछालेदर की कोशिश की भी गई है तो इसे सिरे से नकार देना भर ही काफी है, नाहक तूल क्यों देना, पर पाकिस्तान ने फ़ेसबुक साइट बैन कर दी. फिर लगा कि लोहा गर्म है...सो लगे हाथ यूट्यूब साइट भी बंद कर दी. फिर याद आया कि अरे! ट्विट्टर साइट तो रह ही गई...इसलिए सरकार शाम होते न होते वह फिर लौट के आई और इस पर भी ताला ठोक, दांत फाड़ते हुए चलते बनी.

इधर, भारत में तमाम हिन्दू देवी-देवताओं की तो एक ज़माने से बाक़ायदा फ़िल्में बनती रही हैं. नारद मुनि जैसे देवताओं को तो लोग कामेडियन के ही रूप में देखने के आदि हो गए हैं. दोनों समाज कितना अलग सोचते हैं. अच्छा लगता है यह पाकर कि हम सोचने और बोलने के लिए आज़ाद है....और हां, हमारे यहां इस तरह की वेबसाइट्स बैन करने का रिवाज़ भी नहीं है.

Saturday, May 15, 2010

RTI की असफलता के कारण



RTI की असफलता के कारणों में एक यह भी है कि कुछ लोगों ने तमाम ऊल-जुलूल क़िस्म की जानकारियां 10-10 रूपये में महज इसलिए मांगने का 'धंधा' अपना रखा है कि बाबुओं की नकेल कस कर रखी जा सके.

इस तरह के लोगों ने बाबुओं को 'डराने'  वाले नामों की संस्थाएं बना ली हैं जिनमें एंटी-करप्शन, सिविल, विजीलेंस, कांग्रेस और भी न जाने इसी तरह के कितने ही शब्द जोड़ रखे हैं. इनकी अज़ियों में सूचना मांगने का लहज़ा धमकी भरा होता है मानो कह रहे हों कि बच्चू अब तुम्हारी नौकरी खा जाएंगे.

इस धंधे के ये माहिर, एक ही अर्ज़ी में इतनी तरह की जानकारी मांगते हैं कि अगर सभी कर्मचारी 24ओं घंटे भी जुटे रहें तो भी वह जानकारी 30 दिन में तो क्या सालों में भी नहीं दी जा सकती.

ऐसे में, पहले से ही मोटी चमड़ी वाले बाबू लोग भी हर तरह के हथकंडे अपना कर RTI सूचनाएं न देने या फिर आड़ी-तिरछी सूचनाएं देने के हथकंडे अपनाने से नहीं चूकते. इस सबके चलते, गेहूं के साथ-साथ घुन भी पिस रहा है.
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Friday, May 14, 2010

ब्लागरत्रयी ज्ञान-शुक्ल-समीर... हुआ क्या है!

मैंने तीनों की पोस्ट की पढ़ीं.


ज्ञान जी ने जो समझा वह लिखा. (अपने विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार हम सभी को है भी.)  उनकी भाषा में न तो कहीं कोई दुराग्रह/पूर्वाग्रह मैंने पाया. न ही, उनकी भाषा में कोई अभद्रता है. अलबत्ता, उनकी पोस्ट में, जहां एक ओर शुक्ल जी के लिए बड़े भाई का सा निहित अधिकार झलकता है वहीं इस लेख में समीर जी के लिए कोई ऐसी बात नहीं दिखी कि वे उनका अपमान करना चाहते थे.


जवाब में शुक्ल जी ने एक बेहतरीन परिपक्व (वे भाषा के धनी हैं) पोस्ट लिखी है. हां, समीर जी अपनी पोस्ट में आहत ज़रूर दिखे पर उन्होंने भी अपना बड़प्पन नहीं खोया, उनकी भाषा की शालीनता में उनका कवि साफ झलकता है.


इस बीच, बहती गंगा में हाथ धोने निकले ढेरों कुकुरमुत्ते जहां तहां दिखाई देने लगे, संभ्रांत भाषा की सारी हदें लांघ, एक से एक ओछे वक्तव्य देते हुए. यद्यपि कई मित्रों ने, मित्रधर्मसम्मत, किसी भी बात को तूल न देने की अनुनय अवश्य की, यह पढ़कर अच्छा लगा.


हिन्दीधर्मियों को अभी दिल बड़ा करने का गुण सीखने में समय लगेगा. मैं इन तीनों की व्यक्तिगत विचाराभिव्यक्ति का समान आदर करता हूं व मुझे इनके बीच कोई अंतर नहीं लगता. हम में दूसरों के विचारों के आदर का माद्दा होना ही चाहिये. पर, शायद हम हिन्दीभाषी  बहसों के बिना रह ही नहीं सकते (हो सकता है हम इसे कमज़ोरी के बजाय ताक़त समझते हैं) .
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Wednesday, May 12, 2010

मज़ाकिया फ़तवे

वह भी ज़रूर एक समय रहा होगा जब भाषाई ज्ञान की सीमाओं के चलते पवित्र क़ुरान को पढ़ने-समझने समझने वाले बहुत कम लोग रहे होंगे. उस समय, भाषा के जानकार मुल्ला-क़ाजी अपनी समझ के अनुसार इसके अर्थ आम लोगों को बताया करते थे. आज समय बदल गया है, मुल्ला-क़ाजियों के अलावा भी अनगिनत भाषाविद् हैं जो कुरान को कहीं बेहतर पढ़ और समझ सकते हैं.


ऐसे में अच्छा होगा कि फ़तवे ज़ारी करने वाले मेहरबान लोग, फ़तवों के साथ यह भी बता दिया करें कि क़ुरान में ठीक फ़लां जगह यह लिखा है ताकि उनके फ़तवों की पुष्टी की जा सके.


यही हाल एक समय संस्कृत जानने वालों का था, जो आम हिन्दुओं को उनके धर्मग्रंधों  के  ऐसे अर्थ बताते थे जिनसे उनका अपना उल्लू सीधा होता हो. लेकिन आज उनकी कोई नहीं सुनता.  मुस्लिम समुदाय को भी इस्लाम के इन अनुवादकों के बारे में आज गंभीरता से सोचना होगा.
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Sunday, May 9, 2010

मम्मियों का डे

सुबह-सुबह एग्रीगेटर देखकर पता चला कि केवल आज मदर्स डे है. भारतीय शहरी मध्यवर्ग को अफ़ीम का एक डोज़ और. ब्लागरों को पोस्ट लिखने का एक बहाना और. हमारे यहां तो भई हर रोज़ ही माता-पिता व परिवार का रहता आया है, हल्ला किस बात का.

Monday, May 3, 2010

Honor Killings का सच.

एक और मां-बाप ने, अख़बार में काम करने वाली अपनी ही बच्ची निरूपमा पाठक समाजी ढकोसले के चलते मार दी. सोचता हूं कि कैसे मां बाप हैं ये और कैसा है इनका ये तथाकथित सामाजिक सम्मान. बच्चियों के भ्रूण-हत्यारे ही आगे चलकर ऐसे मां-बाप हो सकते हैं. यह भी सोचता हूं कि इनके हास्यास्पद तथाकथित सामाजिक सम्मान की शिकार इनकी ये निरीह अपनी ही बेटियां क्यों होती हैं, अपने बेटे क्यों नहीं.

यह भी सोचता हूं कि कैसे क्रूर होते होंगे ऐसे मां-बाप जो फूलों की तरह पाल कर अपनी ही बेटियों को यूं मार देने का जिगरा रखते हैं. मैं नहीं जानता कि क्रूरतम जानवर  भी ऐसा कर सकते हैं या नहीं.

उफ़्फ़ ये डरपोक और कायर लोग.
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Sunday, May 2, 2010

अफ़ग़ानिस्तान के लिए क्रिकेट बहुत ज़रूरी है

आदिकाल से ही विभिन्न जनजातियों में बंटे चले आ रहे अफ़ग़ानिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में बांध सकने के लिए आज केवल क्रिकेट ही सक्षम दिखता है. यहां राजनीति व जनजातियों की अपनी-अपनी सीमाएं रही हैं जिनके चलते अफ़ग़ानिस्तान कभी भी लड़ाकू क़ौम से ऊपर उठ कर एक समग्र समाज के रूप में नहीं उभर सका है.

जनजातीय खेलों के अतिरिक्त फुटबाल अफ़ग़ानिस्तान का अन्य लोकप्रिय खेल है किन्तु कड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के चलते इस खेल में कोई बहुत बड़ी उपलब्धि पाना इसके लिए कठिन रहा है . क्रिकेट में यदि अफ़ग़ानिस्तान अच्छा प्रदर्शन करता है तो यह खेल इस राष्ट्र को एक सू़त्र में बांधने में एक महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध हो सकता है.
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Saturday, May 1, 2010

ग़ैर शादीशुदा होने से चिड़चिड़ापन बढ़ता है.

शादी न होने के तीन कारण हो सकते हैं; शारीरिक सौंदर्य का अभाव, सामाजकि-आर्थिक/ व्यवहारिक-बौद्धिक अक्षमताएं या फिर सभिज्ञ निर्णय.

माधुरी गुप्ता सरीखे लोगों की सिविल सेवा की आकांक्षा जब पूर्ण नहीं होती व दोयम दर्ज़े की नौकरी करनी पड़ती है तो वे खुद को दूसरों के बराबर या उनसे भी अधिक सक्षम सिद्ध करने के हास्यास्पदात्मक मौक़े ढूंढते रहते हैं.

ऐसे में, शादीशुदा न होना एकाकीपन और बढ़ा देता है जिससे व्यक्ति भड़ास निकालने के  नए नए तरीक़े ढूंढता रहता है. माधुरी गुप्ता को देशद्रोह तक में कोई दोष नहीं दिखा.
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Saturday, April 24, 2010

राजस्थान का ललित मोदी.

वाह रे ललित मोदी कल तक तो तुम्हारे राजस्थानी होने पर हम गर्व कर रहे थे पर, तुम्हारे कारनामे जैसे-जैसे सामने आ रहे हैं अब तो ख़ुद को गै़र-राजस्थानी बताना पड़ रहा है.

प्रभु ने तुम्हे नि:संदेह बुद्धी दी है पर, वो तुम्हें सद्बुद्धी भी दे..
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Sunday, April 18, 2010

आपकी पोस्ट पर लानत भेजता हूं

कई ब्लाग पोस्ट पढ़कर दिल तो करता है कि टिप्पणी दूं - "आपकी पोस्ट पर लानत भेजता हूं"...पर समाजकर्म है कि कुछ कहते नहीं बनता. कम से कम कविताओं के ढेरों ब्लागों की तो यही हालत है. एक से एक फुसफुसी तुकबंदियां...(हालांकि कविताओं के भी कुछ ब्लाग बहुत बेहतरीन हैं)

और उस पर तुर्रा ये कि अगर महिला कवियत्री हुई तब तो टिप्पणियों की बाढ़ सी ही आ जाती है. अरे भई बुरा नहीं कह सकते तो अच्छा तो मत बताओ. अभी नया-नया हूं इस दुनिया में...शायद मैं भी समझ जाउं धीरे-धीरे...
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अब पाकी क्या करेंगे ?

कल IPL के मैच के दौरान बैंगलोर में फटे दो बाम्ब के बावज़ूद न तो वहां कोई भगदड़ मची और न लोग घरों को लौटे. मैच भी हुआ और लोगों ने ठस्से से देखा भी.

पाकिस्तानी क्ल शाम से ज़रूर सिर खुजाते घूम रहे होंगे कि अरे ये क्या हो गया, भारतीयों ने तो डरना ही छोड़ दिया.  अमरीका को बैंगलोर के लोगों से सीख लेनी चाहिए जो वर्ना एक दशक से सनकियों की तरह पगलाया सा व्यवहार कर रहा है.
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Saturday, April 17, 2010

वाह भई मोदी ये क्या कर दिया

IPL में कुछ तो धांधली है, इसका विश्वास तो सभी को शुरू से ही था पर ये ललित मोदी इतना निरंकुश व्यवाहर करने लगेगा यह किसी ने नहीं सोचा था. ललित मोदी को याद रखना चाहिये कि राज्य से पंगा वही ले सकता है जिसके अपने दामन में दाग़ न हो.

शशि थरूर ने अगर कुछ ऐसा किया है जैसा कि ललित मोदी का आरोप है तो इसमें नई बात क्या है, राजनीतिज्ञ ऐसा तो करते ही आए हैं. सवाल बस इतना है कि एक तो चोरी दूसरे सीनाजोरी, ज़रा थोड़ी टेढ़ी खीर है. जहां तक इन्कम टैक्स की बात है, इस कानून के दांत कोई ख़ास नहीं हैं यह सभी जानते हैं, सिवाय टी.वी. चैनलों के.

अलबत्ता अगले साल से हो सकता है कि IPL की चमक धीमी पड़ने लगे.
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Wednesday, April 14, 2010

ऐसे में बेचारी कांग्रेस क्या करे.

कांग्रेस की प्रोग्रेसिव पहचान के चलते शशि थरूर आराम से इसमें चले आए. संयुक्तराष्ट्रीय छवि व मलियालम फ़ैक्टर के चलते केरल से लोकसभा की सीट भी निकाल लाए. पहली ही बार में गच्च से विदेश राज्यमंत्री पद का जुगाड़ हो गया.

पर अपने बड़बोलेपन और रंगीन मिजाज़ियों के चलते ये साहब अब कांग्रेस के गले की ही हड्डी बन बैठे हैं. कांग्रेस की भी मज़बूरी है कि कंगाली में आटा और गीला न होने पाए, यही सोच कर अभी तक इन साहब को सहन किय जा रहा है. देखिये कि ये काठ की हांडी कितनी देर और चलती है.
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Tuesday, April 13, 2010

राजनीति में भरोसा फिर क़ायम हो गया

किसी चैनल पर BJP का भंडाफोड़ देखा जिसमें कोई आरोपी बड़े बड़े कांग्रेसियों के नाम ले रहा था कि कैसे बंबई के पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति में उसने तीर मारे..कैसे वो इन्कम टैक्स के छापे से बच गया.

कल तक तो बेचारा जूदेव सिंह अकेला धरा जा रहा था.

बहुत अच्छा लगा ये जानकर कि हमारी राजनीति आज भी वहीं की वहीं है...अपनी ग़लीज दुनिया में. रिएश्योरिंग न्यूज़ के लिए टी.वी. चैनल का धन्यवाद.
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Saturday, April 10, 2010

गुड मार्निंग, सरकार !

76 पुलिस वालों को यूं घेर कर मार डालने के बावजूद क्या सरकार को ये लगता है कि नक्सलियों को हराने के लिये उसके पास कोई नीति है ? या यूं ही गाल बजाने से काम चलाते रहेंगी सरकारें !

सरकारों को याद रखना चाहिये कि पुलिस में केवल रोटी की चाह में भर्ती होने वालों की संख्या घट रही है. अब सिपाही भी खाते पीते घरों से आते हैं  और वे यूं गुफाकाल के हथियारों और सुविधाओं के साथ जीने को तैयार नहीं हैं. चेतने का समय निकलने नहीं देना चाहिये.
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Sunday, March 28, 2010

क्या मोदी का कुछ होगा ?

लालू का तो कुछ नहीं विगड़ा, मायावती का भी कुछ नहीं बिगड़ा. कौन जाने क्या होगा मोदी का. राम जाने कुछ होगा भी कि नहीं. यही जानने के लिए अब देखेंगे न्यायपालिका का एक और निर्णय हम लोग.

Thursday, March 25, 2010

एम.पी. को देख सीटी बजाने के दिन आए

मुलायम सिंह यादव का मानना है कि महिला आरक्षण इस लिए नहीं होना चाहिये कि महिला सांसदों को देखकर छोरे सीटियां बजाएंगे.

लेकिन ऐसी महिलाओं को बिना सांसद बने ही, कोई देख सीटी बजाए तो शायद इन्हें कोई एतराज़ नहीं है. साथ ही, बिना आरक्षण के जीत कर आने वाली महिलाओं पर कोई सीटी नहीं बजाएगा, इस बात की भी गांरटी है. 

सीटीयां बजाने वाली प्रजाति को प्रणाम. भई ऐसी सोच वाले लोग किन कारखानों में बनाए जाते हैं, पता नहीं...
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Wednesday, March 24, 2010

मूर्ख डाकुओं की मेट्रो रेल !

दिल्ली में मेट्रो रेल चलाई थी भीड़ कम करने के लिए.

तमाम बसें बंद कर दीं. अब लोग बेचारे बसों से दुगना किराया देते हैं और मज़बूरी में मेट्रो में ठुस कर चलते हैं. चार-चार डिब्बों की मेट्रो को आठ-आठ डिब्बों की ज़रूरत है. लेकिन डिब्बे बढ़ाने के बजाय चवन्नी-चवन्नी के खर्चे पर, लोगों को धकिया कर ठेलने के लिए ठुल्ले भर्ती कर लिए हैं, चीन की तर्ज़ पर.

हवाई अड्डे से, 100-100 रूपये की टिकट वाली एक और ट्रेन की तैयारी है, उनके लिए जो हज़ारों की टिकट पर उड़ते हैं और जिन्हें लेने के लिए कारें पहले से तैयार रहती हैं. यह ट्रेन कनाट प्लेस तक 20-25 मिनट लेगी लेकिन खाली चलेगी. वहीं, जो रेल अभी चलती है वह 60 मिनट लेती है व ठुस कर भरी रहती है.

दूसरी तरफ, बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों पर धक्के खाकर पहुंचने वालों के लिए फिर धक्के ही धक्के. अंधेर नगरी चौपट राजा.
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Monday, March 22, 2010

नौकरी साथ जाएगी

कुछ लोग कह गए कि साथ कुछ नहीं जाएगा. सब खाली हाथ जाएंगे. 

पर मेरे एक मित्र हैं जिन्हें लगता है कि शायद कुछ साथ जाए न जाए, नौकरी साथ ज़रूर जाएगी. चौबीसों घंटे नौकरीमय रहते हैं. न परिवार की परवाह न मित्रों की चाह. और भी बड़े आदमी बनके ही मानेंगे.


उन्हें यह भी ज़रूर लगता होगा कि अगर कुछ हो भी गया तो नौकरी उठा कर उन्हें अस्पताल ले जाएगी और इनके सिराहने बैठ चौबीसों घंटे इनका ध्यान रखेगी.


मुझे पता है कि आप ऐसे नहीं हैं !
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Sunday, March 21, 2010

बन्दूको की सलामी और जोकरई

अंग्रज़ों ने अपने समय के छुटभइए राजाओं को उल्लू बनाने के लिए तोपों की सलामी-प्रथा शुरू कर रखी थी. जो अंग्रेजों का जितना बड़ा पिट्ठू उसे उतनी ही ज़्यादा तोपों की सलामी. ये जोकर राजा इसी बात पर मूछों पर ताव दिए घूमते थे कि देखा उन्हें कितनी ज़्यादा तोपों की सलामी मिलती है ! अंग्रेज़ मुस्कुरा दिया करते थे.


अंग्रेज़ तो चले गए पर उनके पट्ठे आज भी सलामी लेते घूमते हैं, तोपें नहीं हुईं तो क्या हुआ कट्टे, दुनाली ही सही. आज भी एक तथाकथित भाजपाई नेता ने इसी सलामीबाज़ी के चलते मध्यप्रदेश में एक ग़रीब मरवा दिया.


सरकारें क्या इसे रोकने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट की लात की इंतज़ार में हैं !
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Saturday, March 20, 2010

लाठीधारी स्त्रिवादियों को भी जै राम जी की.

मुझे लगा कि घुघूती बासूती के ब्लाग पर की गई इस टिप्पणी को यहां पोस्ट की तरह लगाया जाना चाहिये:-


कुछ लोगों के दिमाग़ में यह अच्छे से बैठ गया है कि पुरूष केवल स्त्री का शोषक व केवल शोषक ही हो सकता है (कारण :- हो सकता है उनके घरों में या उनके आस पास ऐसा होता आया हो). ऐसे में उनकी आंखों पर एक ही मायोपिक चश्मा रहता है जिससे उन्हें यह बिल्कुल नहीं दिखता कि स्त्री व पुरूष एक दूसरे के पूरक भी हो सकते है (क्या है मन:स्थिति रूग्णता नहीं है?).
इस चश्में को उतार फेंक यह देखने की ज़रूरत है कि सिक्के के कई पहलू और भी हैं...क्या कभी यह जानने की कोशिश की है इन्होंने कि  पश्चिमी-समाज में स्त्री की भारत सरीखी तथाकथित दोयम स्थिति न होने के बावजूद वहां भी स्त्रियां वे काम करती हैं जिन्हें यहां महिलाओं की तथाकथित आज़ादी पर हमला माना जाता है. ठीक उसी तरह के काम वहां के पुरूष भी करते हैं जिन्हें यहां स्त्रिवादी जीव सामाजिक विकृति माने बैठे हैं.
नवजात को स्तनपान कराना यदि स्त्री ममत्व भी परिलक्षित करता हो तो यह क्रिया पुरूष की गुलामी की द्योतक है क्या ! वहीं, सड़क पर सीटी बजाना या हाथ उठाने की हिमाकत को औचित्यपूर्ण विकृत मस्तिष्क ही ठहरा सकता है...
... one up man-ship के बजाय ज़रूरी है कि समाज के दोनों अंग ठंडे दिमाग़ से काम लें और posturing बंद करें.
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Wednesday, March 17, 2010

कितने बदनसीब हैं ये लोग

कुछ लोग हैं 
कि जिन्हें पता नहीं
खुशियों का मतलब.

और कुछ हैं कि 
खुशियों से मुंह चुराए बैठे हैं.

ज़रूर बदनसीब रहे होंगे
ये लोग.
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परमाणु नीति देख के बनाइयो रे

यह कैसी परमाणु नीति है कि सरकार परमाणु-दुर्घटना की स्थिति में खुद तो अपना पल्ला झाड़ कर किनारे खड़े हो जाने पर तुली ही हुई है; साथ ही साथ, देश के मुज़रिमों को बचाने में भी पीछे नहीं रहना चाहती.

भोपाल गैस त्रासदी से सरकार ने शायद यह सही सीख ली है कि सैकड़ों-हज़ारों पीड़ितों से पीछा छुड़ाने का सही तरीक़ा ही यही है कि मुज़रिमों के हित में कानून ही बना दो. बांसुरी को कुंद करने के लिए बांस ही काट डालो.

भले आदमी पहले यह तो पूछ लो कि जिन्हें बचाने के लिए भारत की ग़रीब ज़िन्दगियों के हाथ यूं कानून से  बांध कर न्यौछावर करने पर तुले हो तुम,  उन आने वाली कंपनियों के अपने ही देशों में भी इसी तरह के रक्षक कानून हैं क्या उनके लिए ?

क्यों पाकिस्तान सरीख़े बंधक राष्ट्र की ज़िंदगी जीने की ज़िद पर तुले हो तुम !
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Sunday, March 14, 2010

बाबाओं की बन आई है आजकल

पिछले कुछ समय से कोई न कोई बाबा किसी न किसी कांड में फंसता चला आ रहा है. चाहे वह नकली बाबा का पर्दाफ़ाश हो या भगदड़ में मौतें या काला जादू हो या फिर आतंकियों से सांठ-गांठ.


इन सबके चलते एक बात तो तय है कि उन लाखों सच्चे सन्यासियों से भी लोगों का विश्वास उठने लगा है जो जीवन पर्यंत लोक व परलोक दोनों ही के उत्थान में लगे रहते आए हैं.


मीडिया को संयम से काम लेना चाहिये. पोनी-टेल वाले सेनसेशनलियों को बढ़ावा देने से पहले सोचना चाहिये कि क्या पांचों उंगलियां ही बराबर होती हैं ! विज्ञापन लेने के और भी हज़ार रास्ते हैं.
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IPL की जंबूरी चालू आहे

वाह ! हम भारतीयों ने भी क्या किस्मत पाई है. हाकी का विश्वकप ख़त्म हुआ नहीं कि IPL शुरू हो गया. 

बाबू लोग जल्दी जल्दी दफ़्तरों से आते हैं और टी0 के0 आगे जम जाते हैं. बच्चे रिमोट ढूंढते रह जाते हैं. पत्नियां पतियों की फ़रमाइश पर रसोइयों में नई नई चीज़े बनाने की जुगत भिड़ाती रहती हैं.



हमें नशे की लत हो गई है. सास-बहू सीरियलों की ही तरह IPL भी भुना रहा है इसे.

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Saturday, March 13, 2010

वाह भई कल्बे छा गए तुम तो

लखनऊ के एक कोई तथाकथित काले चोगे वाले शिया लीडर कह रहे हैं कि महिलाओं का काम सिर्फ़ बच्चे पैदा करना है न कि अपना हिस्सा मांगना. इन सज्जन का नाम है कल्बे जव्वाद. कल किसी दूसरे टी.वी. चैनल पर एक साधूबाबा भी कुछ यही राग अलाप रहे थे.

इन प्रस्तरयुगीन विचारधारा वाले लोगों का कब उद्धार करोगे प्रभो !  इन्हें ज़्यादा नहीं तो कम ही सही, मगर कुछ बुद्धी तो दे ही दो.

लोग तो जानवरों को भी प्यार से संबोधित करते हैं, कल्बे जी.
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आओ तरक़्की की बात करें

तरक़्की की क्या कहूं, मेरे प्रधानमंत्री 6 से 10 के बीच की सकल घरेलू उत्पाद की बात करते हैं. इसी के चलते शहरों में खाते-पीते लोगों की संख्या बढ़ने का सबूत है बजन कम करने की दुकानें खुलती ही चली जा रही हैं

दूसरी तरफ़ गांव का किसान दु:खी होकर मज़दूर बन इन्हीं शहरों में आ भटकने लगा है.


कैसी तरक़्की है ये, इसे मेरे गांवों में भी तो पहुंचाओ.

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Friday, March 12, 2010

श्श्श्श्श...पाकिस्तान का मज़ाक उड़ाना मना है.

कल तक, पाकिस्तान के पास ले दे कर दो ही चीजें थीं जिनके भरोसे ये गंजे बच्चों की मानिंद उछल-उछल कर दुनिया को अपना बचकाना सा मुंह दिखाता आया है. पहला है परमाणु बम्ब व दूसरे, हाकी-क्रिकेट का खेल.


क्रिकेटरों को कल इसने हड़का के बर्ख़ास्त कर दिया, आज हाकी की पूरी टीम ने डर के मारे ख़ुद ही स्तीफ़ा दे दिया. परमाणु बम्ब पर अमरीकी मरीन  पहले ही कुंडली मारे बैठे हैं. अब पाकिस्तान के पास बचा क्या !


ऐसे में सबसे बढ़िया एक बात जो इतिहास सिखाता आया है वह आज भी वैध है. कल तुर्की साम्राज्य से बचाव के लिए अंग्रेज़ों ने अफ़ग़ानिस्तान को बफ़र बना रखा था आज तालिबानियों के भारत में उत्पात से बचने के लिए हमें पाकिस्तान की सख़्त ज़रूरत है. 


IPL  वालों को चाहिये कि, राष्ट्रहित में, इसी के चलते पाक क्रिकेटरों को कुछ पैसे दे कर खिला लें. पाकिस्तान को, अमेरिका के अलावा भी चार पैसे की मदद हो जाएगी.
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Wednesday, March 10, 2010

काहे ब्याही बिदेस लखी

न जाने कौन सा भ्रम है कि फूलों सी पालने के बाद भी मां-बाप अपनी बेटियों को विदेश ब्याह देते हैं. 

इतनी ख़बरें रोज़ आती हैं कि इन बेटियों को विदेशों में जाने क्या-क्या सहना पड़ता है और मां-बाप हैं कि चाह कर भी अपने कलेजे के टुकड़े के लिए कुछ नहीं कर पाते. 

सरकारों और कानूनों के सहारे रिश्ते भी चला करते हैं क्या !

भौतिकता व कथित समाजिक सम्मान पर ममता कब पार पाएगी  ?
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ब्लाग लिख कर तीर मारने वालों की फ़ेहरिस्त

उस दिन मैं बात कर रहा था - " भई राम लाल, ये ब्लाग लिखने की क्या सूझी ?"

राम लाल -"अरे भाई, जब ये लेखक टाइप लोग कुछ कुछ लिख कर इस मुग़ालते में रहते हैं कि उनके लिखे से समाज बदल जाएगा तो फिर मैं क्यों पीछे रहूं !"

-"तो ?" 

-"तो क्या, मैंने भी ठान ली कि मैं भी रहे-सहे समाज को हिन्दी ब्लाग लिख कर बदल डालूंगा, और साथ ही साथ बैठे-ठाले हिन्दी की सेवा भी हो जाएगी."

-"हें हें हें"

-"हें हें हें क्या कर रहे हो, यही सच्चाई है. न मानो तो किसी से भी पूछ लो."
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Tuesday, March 9, 2010

महिला आरक्षण की एक लघुकथा

नेता जी नींद से हड़बड़ा कर उठ बैठे - "जानती हो मैंने अभी सपने में देखा कि मेरी लाल बत्ती की कार में तुम पिछली सीट पर बैठी हो और मैं, आगे ड्राइवर के बगल में "

पत्नी -"इत्ता काहे डरते हो जी, ये तो सोचो कि कार तो हमारे अपने ही घर में रही न.  और फिर तुम चाहो तो मैं तो आपको ड्राइवर ही की सीट में बिठा दूंगी जी ..हे ..हे..हे."

नेता जी को कुछ समझ नहीं आया. बस, सोचते हुए फिर से सोने की कोशिश करने लगे.
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महिला आरक्षण विधेयक की सबसे बड़ी ग़लती.

सोचना तो सरकार को भी चाहिये कि जब, संसद व राज्यों में पहले से ही अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण है तो क्यों नहीं जनप्रतिनिधियों की समस्त संख्या में से महिला आरक्षण दिया जाता.

या कहिये कि कुल सीटें 100, अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए 23, बाक़ी बची 77, तो 77 में से 33% का आरक्षण क्यों !

क्यों नहीं 100 में 50% आरक्षण दे देते महिलाओं को. जाति-आरक्षित सीटें तो पहले ही चिन्हित हैं, 100 में से भी एक अनुपात में तय कर दें कि कौन कौन सी सीटें केवल महिलाओं के लिए रहेंगी. इससे मुलायमों/ लालुओं का अफ़ारा भी ठीक हो जाएगा, सदनों में महिलाएं भी प्रयाप्त संख्या में आ पाएंगी.

पर बिल्ली के गले घंटी बांधे कौन ? न सोनिया गांधी मेरा ब्लाग पढ़ती है न मनमोहन सिंह,  और जो, मुझ सरीखे, पढ़ते भी हैं उनकी बेचारे मुलायमों/ लालुओं जितनी ही चलती है :-)
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Sunday, March 7, 2010

आलोक मेहता को एक चपत राम लाल की भी.

कोई आलोक मेहता किसी अख़बार में ब्लागरों के बारे में कुछ उल्टा-सीधा लिख कर होली मना चलता बना. 

बाद में पता कि हिन्दी ब्लागरों से पंगा लेने वाले ये सज्जन आजकल राजनीति के गलियारों में संसद-सदस्यता सूंघते घूम रहे हैं. ये पत्रकार टाइप कुछ हैं; यहां-जुगाड़ बिठाने में काबिल हैं और अब संपादकी कर रहे हैं. और अभी भी इसी मुग़ालते में घुले जा रहे हैं कि संपादक आज भी बहुत बड़ी तोप होता है जो लेखकों को लतिया सकता है :-)

कई ब्लागर आते-जाते ब्लाग-पोस्ट लिख एक चपत लगा चले आ रहे हैं इसलिए, एक मेरी भी सही.
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कृपालु ये क्या कह दिया

कुण्डा के आश्रम में मची भगदड़ में दसियों ग़रीबों के मरने की ख़बर पर कृपालु महाराज ने यूं पल्ला झाड़ लिया मानो मरने वाले अफ़गानी तालिबान रहे हों.

क्या फ़ायदा इतनी बड़ी प्रकांड पंडिताइ का कि आदमी ही आदमी न लगे बल्कि ग़ैरजि़म्मेदार ख़ैरात बटोरने वाली भावशून्य भीड़ लगे!

क्या इन कृपालु को किसी वेद-पुराण में यह पढ़ने को नहीं मिला कि ग़रीब इन्सान में भी वही आत्मा वास करती है जो ख़ुद में ? ये लोग समाज को क्या देंगे जो यूं पलायन कर भागते हैं.
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राहुल महाजन की शादी हो गई

यह दिखाने के लिए टी0 वी0 चैनल को धन्यवाद कि समाज में आज भी ऐसी ठाड़ी औरतें हैं जो इस तरह के इन्सान से भी शादी के लिए तैयार बैठी हैं, लाइन लगाकर.

और साधुवाद उन महानुभावों को जो इस तरह के सीरीयल लगातार देखने का माद्दा रखते हैं.
चैनल, प्रतियोगी व दर्शक, सभी को शाबाश.
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बहुत हो ली हाकी, अब बहाने बंद भी करो

कितनी कोशिशें कर लीं हाकी को फिर आक्सीजन देने की. पता नहीं इससे ज़्यादा अब और क्या दरकार है ! हाकी खिलाड़ी उम्मीदें तो क्रिकेटरों की सी पाले बैठे हैं पर खेल रहें हैं मुहल्ला-टीमों की मानिंद.

इस बार हाकी को  किसी भी तरह से क्रिकेट से कम कवरेज़ नहीं मिली. पर किया क्या, वही ढाक के तीन पात. फिर कहते हैं कि कोई हाकी को बढ़ावा नहीं देता. खेल जज्बे से चलता है, जीत का जज्बा.

बहानेबाज़ी बंद कर जीतना शुरू करो, स्टार तो लोग तुम्हें बना ही देंगे.
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Saturday, March 6, 2010

ये कैसा आरक्षण है जी ?

सुना है कि सारी गोटियां फिट करके सरकार महिला आरक्षण विधेयक ला रही है सोमवार को. 

चमड़े के डिजा़यनर झोले लिए चमचमाती कारों में घूमती, बड़ी बिंदियों वाली भैनजियों की चांदी कटने वाली है. 

खूब खबर है ये खूंटा बदल भी. 
शोषण खाली-पीली मर्द ही काहे करें जी !

राम राम सा..

सब बिलगारां कै राम राम जी.

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रेडि‍यो टीवी से दुनि‍या का पता चलता रहता है. कभी कभी अख़बार मि‍ल जाता है तो वो भी पढ़ लेता हूं.