राम लाल री राम राम जी,

Sunday, March 28, 2010

क्या मोदी का कुछ होगा ?

लालू का तो कुछ नहीं विगड़ा, मायावती का भी कुछ नहीं बिगड़ा. कौन जाने क्या होगा मोदी का. राम जाने कुछ होगा भी कि नहीं. यही जानने के लिए अब देखेंगे न्यायपालिका का एक और निर्णय हम लोग.

Thursday, March 25, 2010

एम.पी. को देख सीटी बजाने के दिन आए

मुलायम सिंह यादव का मानना है कि महिला आरक्षण इस लिए नहीं होना चाहिये कि महिला सांसदों को देखकर छोरे सीटियां बजाएंगे.

लेकिन ऐसी महिलाओं को बिना सांसद बने ही, कोई देख सीटी बजाए तो शायद इन्हें कोई एतराज़ नहीं है. साथ ही, बिना आरक्षण के जीत कर आने वाली महिलाओं पर कोई सीटी नहीं बजाएगा, इस बात की भी गांरटी है. 

सीटीयां बजाने वाली प्रजाति को प्रणाम. भई ऐसी सोच वाले लोग किन कारखानों में बनाए जाते हैं, पता नहीं...
0-------0

Wednesday, March 24, 2010

मूर्ख डाकुओं की मेट्रो रेल !

दिल्ली में मेट्रो रेल चलाई थी भीड़ कम करने के लिए.

तमाम बसें बंद कर दीं. अब लोग बेचारे बसों से दुगना किराया देते हैं और मज़बूरी में मेट्रो में ठुस कर चलते हैं. चार-चार डिब्बों की मेट्रो को आठ-आठ डिब्बों की ज़रूरत है. लेकिन डिब्बे बढ़ाने के बजाय चवन्नी-चवन्नी के खर्चे पर, लोगों को धकिया कर ठेलने के लिए ठुल्ले भर्ती कर लिए हैं, चीन की तर्ज़ पर.

हवाई अड्डे से, 100-100 रूपये की टिकट वाली एक और ट्रेन की तैयारी है, उनके लिए जो हज़ारों की टिकट पर उड़ते हैं और जिन्हें लेने के लिए कारें पहले से तैयार रहती हैं. यह ट्रेन कनाट प्लेस तक 20-25 मिनट लेगी लेकिन खाली चलेगी. वहीं, जो रेल अभी चलती है वह 60 मिनट लेती है व ठुस कर भरी रहती है.

दूसरी तरफ, बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों पर धक्के खाकर पहुंचने वालों के लिए फिर धक्के ही धक्के. अंधेर नगरी चौपट राजा.
0----------0

Monday, March 22, 2010

नौकरी साथ जाएगी

कुछ लोग कह गए कि साथ कुछ नहीं जाएगा. सब खाली हाथ जाएंगे. 

पर मेरे एक मित्र हैं जिन्हें लगता है कि शायद कुछ साथ जाए न जाए, नौकरी साथ ज़रूर जाएगी. चौबीसों घंटे नौकरीमय रहते हैं. न परिवार की परवाह न मित्रों की चाह. और भी बड़े आदमी बनके ही मानेंगे.


उन्हें यह भी ज़रूर लगता होगा कि अगर कुछ हो भी गया तो नौकरी उठा कर उन्हें अस्पताल ले जाएगी और इनके सिराहने बैठ चौबीसों घंटे इनका ध्यान रखेगी.


मुझे पता है कि आप ऐसे नहीं हैं !
0------0

Sunday, March 21, 2010

बन्दूको की सलामी और जोकरई

अंग्रज़ों ने अपने समय के छुटभइए राजाओं को उल्लू बनाने के लिए तोपों की सलामी-प्रथा शुरू कर रखी थी. जो अंग्रेजों का जितना बड़ा पिट्ठू उसे उतनी ही ज़्यादा तोपों की सलामी. ये जोकर राजा इसी बात पर मूछों पर ताव दिए घूमते थे कि देखा उन्हें कितनी ज़्यादा तोपों की सलामी मिलती है ! अंग्रेज़ मुस्कुरा दिया करते थे.


अंग्रेज़ तो चले गए पर उनके पट्ठे आज भी सलामी लेते घूमते हैं, तोपें नहीं हुईं तो क्या हुआ कट्टे, दुनाली ही सही. आज भी एक तथाकथित भाजपाई नेता ने इसी सलामीबाज़ी के चलते मध्यप्रदेश में एक ग़रीब मरवा दिया.


सरकारें क्या इसे रोकने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट की लात की इंतज़ार में हैं !
0----------0

Saturday, March 20, 2010

लाठीधारी स्त्रिवादियों को भी जै राम जी की.

मुझे लगा कि घुघूती बासूती के ब्लाग पर की गई इस टिप्पणी को यहां पोस्ट की तरह लगाया जाना चाहिये:-


कुछ लोगों के दिमाग़ में यह अच्छे से बैठ गया है कि पुरूष केवल स्त्री का शोषक व केवल शोषक ही हो सकता है (कारण :- हो सकता है उनके घरों में या उनके आस पास ऐसा होता आया हो). ऐसे में उनकी आंखों पर एक ही मायोपिक चश्मा रहता है जिससे उन्हें यह बिल्कुल नहीं दिखता कि स्त्री व पुरूष एक दूसरे के पूरक भी हो सकते है (क्या है मन:स्थिति रूग्णता नहीं है?).
इस चश्में को उतार फेंक यह देखने की ज़रूरत है कि सिक्के के कई पहलू और भी हैं...क्या कभी यह जानने की कोशिश की है इन्होंने कि  पश्चिमी-समाज में स्त्री की भारत सरीखी तथाकथित दोयम स्थिति न होने के बावजूद वहां भी स्त्रियां वे काम करती हैं जिन्हें यहां महिलाओं की तथाकथित आज़ादी पर हमला माना जाता है. ठीक उसी तरह के काम वहां के पुरूष भी करते हैं जिन्हें यहां स्त्रिवादी जीव सामाजिक विकृति माने बैठे हैं.
नवजात को स्तनपान कराना यदि स्त्री ममत्व भी परिलक्षित करता हो तो यह क्रिया पुरूष की गुलामी की द्योतक है क्या ! वहीं, सड़क पर सीटी बजाना या हाथ उठाने की हिमाकत को औचित्यपूर्ण विकृत मस्तिष्क ही ठहरा सकता है...
... one up man-ship के बजाय ज़रूरी है कि समाज के दोनों अंग ठंडे दिमाग़ से काम लें और posturing बंद करें.
0---------0

Wednesday, March 17, 2010

कितने बदनसीब हैं ये लोग

कुछ लोग हैं 
कि जिन्हें पता नहीं
खुशियों का मतलब.

और कुछ हैं कि 
खुशियों से मुंह चुराए बैठे हैं.

ज़रूर बदनसीब रहे होंगे
ये लोग.
0-----------------0

परमाणु नीति देख के बनाइयो रे

यह कैसी परमाणु नीति है कि सरकार परमाणु-दुर्घटना की स्थिति में खुद तो अपना पल्ला झाड़ कर किनारे खड़े हो जाने पर तुली ही हुई है; साथ ही साथ, देश के मुज़रिमों को बचाने में भी पीछे नहीं रहना चाहती.

भोपाल गैस त्रासदी से सरकार ने शायद यह सही सीख ली है कि सैकड़ों-हज़ारों पीड़ितों से पीछा छुड़ाने का सही तरीक़ा ही यही है कि मुज़रिमों के हित में कानून ही बना दो. बांसुरी को कुंद करने के लिए बांस ही काट डालो.

भले आदमी पहले यह तो पूछ लो कि जिन्हें बचाने के लिए भारत की ग़रीब ज़िन्दगियों के हाथ यूं कानून से  बांध कर न्यौछावर करने पर तुले हो तुम,  उन आने वाली कंपनियों के अपने ही देशों में भी इसी तरह के रक्षक कानून हैं क्या उनके लिए ?

क्यों पाकिस्तान सरीख़े बंधक राष्ट्र की ज़िंदगी जीने की ज़िद पर तुले हो तुम !
0--------0

Sunday, March 14, 2010

बाबाओं की बन आई है आजकल

पिछले कुछ समय से कोई न कोई बाबा किसी न किसी कांड में फंसता चला आ रहा है. चाहे वह नकली बाबा का पर्दाफ़ाश हो या भगदड़ में मौतें या काला जादू हो या फिर आतंकियों से सांठ-गांठ.


इन सबके चलते एक बात तो तय है कि उन लाखों सच्चे सन्यासियों से भी लोगों का विश्वास उठने लगा है जो जीवन पर्यंत लोक व परलोक दोनों ही के उत्थान में लगे रहते आए हैं.


मीडिया को संयम से काम लेना चाहिये. पोनी-टेल वाले सेनसेशनलियों को बढ़ावा देने से पहले सोचना चाहिये कि क्या पांचों उंगलियां ही बराबर होती हैं ! विज्ञापन लेने के और भी हज़ार रास्ते हैं.
0-------0

IPL की जंबूरी चालू आहे

वाह ! हम भारतीयों ने भी क्या किस्मत पाई है. हाकी का विश्वकप ख़त्म हुआ नहीं कि IPL शुरू हो गया. 

बाबू लोग जल्दी जल्दी दफ़्तरों से आते हैं और टी0 के0 आगे जम जाते हैं. बच्चे रिमोट ढूंढते रह जाते हैं. पत्नियां पतियों की फ़रमाइश पर रसोइयों में नई नई चीज़े बनाने की जुगत भिड़ाती रहती हैं.



हमें नशे की लत हो गई है. सास-बहू सीरियलों की ही तरह IPL भी भुना रहा है इसे.

0--------------0

Saturday, March 13, 2010

वाह भई कल्बे छा गए तुम तो

लखनऊ के एक कोई तथाकथित काले चोगे वाले शिया लीडर कह रहे हैं कि महिलाओं का काम सिर्फ़ बच्चे पैदा करना है न कि अपना हिस्सा मांगना. इन सज्जन का नाम है कल्बे जव्वाद. कल किसी दूसरे टी.वी. चैनल पर एक साधूबाबा भी कुछ यही राग अलाप रहे थे.

इन प्रस्तरयुगीन विचारधारा वाले लोगों का कब उद्धार करोगे प्रभो !  इन्हें ज़्यादा नहीं तो कम ही सही, मगर कुछ बुद्धी तो दे ही दो.

लोग तो जानवरों को भी प्यार से संबोधित करते हैं, कल्बे जी.
0------0

आओ तरक़्की की बात करें

तरक़्की की क्या कहूं, मेरे प्रधानमंत्री 6 से 10 के बीच की सकल घरेलू उत्पाद की बात करते हैं. इसी के चलते शहरों में खाते-पीते लोगों की संख्या बढ़ने का सबूत है बजन कम करने की दुकानें खुलती ही चली जा रही हैं

दूसरी तरफ़ गांव का किसान दु:खी होकर मज़दूर बन इन्हीं शहरों में आ भटकने लगा है.


कैसी तरक़्की है ये, इसे मेरे गांवों में भी तो पहुंचाओ.

0----------------0

Friday, March 12, 2010

श्श्श्श्श...पाकिस्तान का मज़ाक उड़ाना मना है.

कल तक, पाकिस्तान के पास ले दे कर दो ही चीजें थीं जिनके भरोसे ये गंजे बच्चों की मानिंद उछल-उछल कर दुनिया को अपना बचकाना सा मुंह दिखाता आया है. पहला है परमाणु बम्ब व दूसरे, हाकी-क्रिकेट का खेल.


क्रिकेटरों को कल इसने हड़का के बर्ख़ास्त कर दिया, आज हाकी की पूरी टीम ने डर के मारे ख़ुद ही स्तीफ़ा दे दिया. परमाणु बम्ब पर अमरीकी मरीन  पहले ही कुंडली मारे बैठे हैं. अब पाकिस्तान के पास बचा क्या !


ऐसे में सबसे बढ़िया एक बात जो इतिहास सिखाता आया है वह आज भी वैध है. कल तुर्की साम्राज्य से बचाव के लिए अंग्रेज़ों ने अफ़ग़ानिस्तान को बफ़र बना रखा था आज तालिबानियों के भारत में उत्पात से बचने के लिए हमें पाकिस्तान की सख़्त ज़रूरत है. 


IPL  वालों को चाहिये कि, राष्ट्रहित में, इसी के चलते पाक क्रिकेटरों को कुछ पैसे दे कर खिला लें. पाकिस्तान को, अमेरिका के अलावा भी चार पैसे की मदद हो जाएगी.
0------------0

Wednesday, March 10, 2010

काहे ब्याही बिदेस लखी

न जाने कौन सा भ्रम है कि फूलों सी पालने के बाद भी मां-बाप अपनी बेटियों को विदेश ब्याह देते हैं. 

इतनी ख़बरें रोज़ आती हैं कि इन बेटियों को विदेशों में जाने क्या-क्या सहना पड़ता है और मां-बाप हैं कि चाह कर भी अपने कलेजे के टुकड़े के लिए कुछ नहीं कर पाते. 

सरकारों और कानूनों के सहारे रिश्ते भी चला करते हैं क्या !

भौतिकता व कथित समाजिक सम्मान पर ममता कब पार पाएगी  ?
0--------0


ब्लाग लिख कर तीर मारने वालों की फ़ेहरिस्त

उस दिन मैं बात कर रहा था - " भई राम लाल, ये ब्लाग लिखने की क्या सूझी ?"

राम लाल -"अरे भाई, जब ये लेखक टाइप लोग कुछ कुछ लिख कर इस मुग़ालते में रहते हैं कि उनके लिखे से समाज बदल जाएगा तो फिर मैं क्यों पीछे रहूं !"

-"तो ?" 

-"तो क्या, मैंने भी ठान ली कि मैं भी रहे-सहे समाज को हिन्दी ब्लाग लिख कर बदल डालूंगा, और साथ ही साथ बैठे-ठाले हिन्दी की सेवा भी हो जाएगी."

-"हें हें हें"

-"हें हें हें क्या कर रहे हो, यही सच्चाई है. न मानो तो किसी से भी पूछ लो."
0------------------0

Tuesday, March 9, 2010

महिला आरक्षण की एक लघुकथा

नेता जी नींद से हड़बड़ा कर उठ बैठे - "जानती हो मैंने अभी सपने में देखा कि मेरी लाल बत्ती की कार में तुम पिछली सीट पर बैठी हो और मैं, आगे ड्राइवर के बगल में "

पत्नी -"इत्ता काहे डरते हो जी, ये तो सोचो कि कार तो हमारे अपने ही घर में रही न.  और फिर तुम चाहो तो मैं तो आपको ड्राइवर ही की सीट में बिठा दूंगी जी ..हे ..हे..हे."

नेता जी को कुछ समझ नहीं आया. बस, सोचते हुए फिर से सोने की कोशिश करने लगे.
0-------------0

महिला आरक्षण विधेयक की सबसे बड़ी ग़लती.

सोचना तो सरकार को भी चाहिये कि जब, संसद व राज्यों में पहले से ही अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण है तो क्यों नहीं जनप्रतिनिधियों की समस्त संख्या में से महिला आरक्षण दिया जाता.

या कहिये कि कुल सीटें 100, अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए 23, बाक़ी बची 77, तो 77 में से 33% का आरक्षण क्यों !

क्यों नहीं 100 में 50% आरक्षण दे देते महिलाओं को. जाति-आरक्षित सीटें तो पहले ही चिन्हित हैं, 100 में से भी एक अनुपात में तय कर दें कि कौन कौन सी सीटें केवल महिलाओं के लिए रहेंगी. इससे मुलायमों/ लालुओं का अफ़ारा भी ठीक हो जाएगा, सदनों में महिलाएं भी प्रयाप्त संख्या में आ पाएंगी.

पर बिल्ली के गले घंटी बांधे कौन ? न सोनिया गांधी मेरा ब्लाग पढ़ती है न मनमोहन सिंह,  और जो, मुझ सरीखे, पढ़ते भी हैं उनकी बेचारे मुलायमों/ लालुओं जितनी ही चलती है :-)
0-------0

Sunday, March 7, 2010

आलोक मेहता को एक चपत राम लाल की भी.

कोई आलोक मेहता किसी अख़बार में ब्लागरों के बारे में कुछ उल्टा-सीधा लिख कर होली मना चलता बना. 

बाद में पता कि हिन्दी ब्लागरों से पंगा लेने वाले ये सज्जन आजकल राजनीति के गलियारों में संसद-सदस्यता सूंघते घूम रहे हैं. ये पत्रकार टाइप कुछ हैं; यहां-जुगाड़ बिठाने में काबिल हैं और अब संपादकी कर रहे हैं. और अभी भी इसी मुग़ालते में घुले जा रहे हैं कि संपादक आज भी बहुत बड़ी तोप होता है जो लेखकों को लतिया सकता है :-)

कई ब्लागर आते-जाते ब्लाग-पोस्ट लिख एक चपत लगा चले आ रहे हैं इसलिए, एक मेरी भी सही.
0-----0

कृपालु ये क्या कह दिया

कुण्डा के आश्रम में मची भगदड़ में दसियों ग़रीबों के मरने की ख़बर पर कृपालु महाराज ने यूं पल्ला झाड़ लिया मानो मरने वाले अफ़गानी तालिबान रहे हों.

क्या फ़ायदा इतनी बड़ी प्रकांड पंडिताइ का कि आदमी ही आदमी न लगे बल्कि ग़ैरजि़म्मेदार ख़ैरात बटोरने वाली भावशून्य भीड़ लगे!

क्या इन कृपालु को किसी वेद-पुराण में यह पढ़ने को नहीं मिला कि ग़रीब इन्सान में भी वही आत्मा वास करती है जो ख़ुद में ? ये लोग समाज को क्या देंगे जो यूं पलायन कर भागते हैं.
0---0

राहुल महाजन की शादी हो गई

यह दिखाने के लिए टी0 वी0 चैनल को धन्यवाद कि समाज में आज भी ऐसी ठाड़ी औरतें हैं जो इस तरह के इन्सान से भी शादी के लिए तैयार बैठी हैं, लाइन लगाकर.

और साधुवाद उन महानुभावों को जो इस तरह के सीरीयल लगातार देखने का माद्दा रखते हैं.
चैनल, प्रतियोगी व दर्शक, सभी को शाबाश.
0-----0

बहुत हो ली हाकी, अब बहाने बंद भी करो

कितनी कोशिशें कर लीं हाकी को फिर आक्सीजन देने की. पता नहीं इससे ज़्यादा अब और क्या दरकार है ! हाकी खिलाड़ी उम्मीदें तो क्रिकेटरों की सी पाले बैठे हैं पर खेल रहें हैं मुहल्ला-टीमों की मानिंद.

इस बार हाकी को  किसी भी तरह से क्रिकेट से कम कवरेज़ नहीं मिली. पर किया क्या, वही ढाक के तीन पात. फिर कहते हैं कि कोई हाकी को बढ़ावा नहीं देता. खेल जज्बे से चलता है, जीत का जज्बा.

बहानेबाज़ी बंद कर जीतना शुरू करो, स्टार तो लोग तुम्हें बना ही देंगे.
0-----0


Saturday, March 6, 2010

ये कैसा आरक्षण है जी ?

सुना है कि सारी गोटियां फिट करके सरकार महिला आरक्षण विधेयक ला रही है सोमवार को. 

चमड़े के डिजा़यनर झोले लिए चमचमाती कारों में घूमती, बड़ी बिंदियों वाली भैनजियों की चांदी कटने वाली है. 

खूब खबर है ये खूंटा बदल भी. 
शोषण खाली-पीली मर्द ही काहे करें जी !

राम राम सा..

सब बिलगारां कै राम राम जी.

About Me

My photo
रेडि‍यो टीवी से दुनि‍या का पता चलता रहता है. कभी कभी अख़बार मि‍ल जाता है तो वो भी पढ़ लेता हूं.