एक बाला साहब ठाकरे है तो दूसरा नीम चढ़ा उसी का भतीजा राज ठाकरे है. दोनों चूहों की तरह महाराष्ट्र में छुपे रह कर हर चार दिन बाद कुछ न कुछ बकवास करते रहते हैं. ये बाला साहब ठाकरे तो साहब भी कहीं से नहीं दिखता, पता नहीं कहां से ऐसा नाम धरे डोल रहा है.
कल तक मराठा दिखने वाला सचिन तेंडुलकर, कॉंग्रेस ने राज्यसभा क्या भेज दिया, अब इस बद्दिमाग़ बुड्ढे को वही सचिन तेंडुलकर कार्टून नज़र आने लगा है. कभी अमिताभ बच्चन को हड़काने चले आते हैं तो कभी ग़रीब बिहारियों को मारपीट कर शोहदागिरी दिखाते घूमते हैं.
गैर मराठियों की तो छोड़ो, सवाल ये है कि क्या हर मराठी इन दो जोकरों की बपौती है ? क्या हर मराठी को इनसे पूछ कर ही सॉंस लेना होगा ? कब तक लोग इनकी गुण्डई सहते रहेंगे ? इनके गुण्डों को क्यों नहीं महाराष्ट्र सरकार उठा के जेलों में ठूँस देती, कब तक कानून व्यवस्था का डर दिखा कर ये यूं ही लोकतंत्र को बंधक बनाए रखेंगे. महाराष्ट्र की सरकारों से कहीं अच्छी तो मायावती निकली थी जिसने महेन्द्र सिंह टिकैत के जातिसूचक अपमानजनक वाक्यों के चलते उसी की मॉंद में जाकर उसे गिरफ़्तार कर दिखाया था. बाद में माफ़ीनामे से जाकर जान छूटी थी टिकैत की.
इन्हें नाहक ही इनके कद से कहीं अधिक बड़ा होने दिया गया है. बहुत हो गया, इन्हें लतियाने के दिन आ गए हैं.
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