एक और मां-बाप ने, अख़बार में काम करने वाली अपनी ही बच्ची
निरूपमा
पाठक समाजी ढकोसले के चलते मार दी. सोचता हूं कि कैसे मां बाप हैं ये और कैसा है इनका ये तथाकथित सामाजिक सम्मान. बच्चियों के भ्रूण-हत्यारे ही आगे चलकर ऐसे मां-बाप हो सकते हैं. यह भी सोचता हूं कि इनके हास्यास्पद तथाकथित सामाजिक सम्मान की शिकार इनकी ये निरीह अपनी ही बेटियां क्यों होती हैं, अपने बेटे क्यों नहीं.
यह भी सोचता हूं कि कैसे क्रूर होते होंगे ऐसे मां-बाप जो फूलों की तरह पाल कर अपनी ही बेटियों को यूं मार देने का जिगरा रखते हैं. मैं नहीं जानता कि क्रूरतम जानवर भी ऐसा कर सकते हैं या नहीं.
उफ़्फ़ ये डरपोक और कायर लोग.
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मानवीय संबेदनाओं को दिखाती उम्दा प्रस्तुती !!!! /
ReplyDeleteआप भी बहुत जल्दी निष्कर्ष पर पहुँच गए राम लाल जी, एक अनुरोध करूंगा कि इस लिंक को जरूर पढ़े आप ; http://streevimarsh.blogspot.com/2010/05/blog-post_03.html
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