ऐसे में अच्छा होगा कि फ़तवे ज़ारी करने वाले मेहरबान लोग, फ़तवों के साथ यह भी बता दिया करें कि क़ुरान में ठीक फ़लां जगह यह लिखा है ताकि उनके फ़तवों की पुष्टी की जा सके.
यही हाल एक समय संस्कृत जानने वालों का था, जो आम हिन्दुओं को उनके धर्मग्रंधों के ऐसे अर्थ बताते थे जिनसे उनका अपना उल्लू सीधा होता हो. लेकिन आज उनकी कोई नहीं सुनता. मुस्लिम समुदाय को भी इस्लाम के इन अनुवादकों के बारे में आज गंभीरता से सोचना होगा.
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ज्ञानदत्त जी से जलने वालों! जलो मत, बराबरी करो. देखिए
ReplyDeleteSahi Kaha!
ReplyDeleteकट्टर और धर्मांध तालिबानी मुसलमानों के साथ असली दिक्कत यही है कि वे वक्त के साथ बदलते नहीं ..
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