भोपाल गैस त्रासदी से सरकार ने शायद यह सही सीख ली है कि सैकड़ों-हज़ारों पीड़ितों से पीछा छुड़ाने का सही तरीक़ा ही यही है कि मुज़रिमों के हित में कानून ही बना दो. बांसुरी को कुंद करने के लिए बांस ही काट डालो.
भले आदमी पहले यह तो पूछ लो कि जिन्हें बचाने के लिए भारत की ग़रीब ज़िन्दगियों के हाथ यूं कानून से बांध कर न्यौछावर करने पर तुले हो तुम, उन आने वाली कंपनियों के अपने ही देशों में भी इसी तरह के रक्षक कानून हैं क्या उनके लिए ?
क्यों पाकिस्तान सरीख़े बंधक राष्ट्र की ज़िंदगी जीने की ज़िद पर तुले हो तुम !
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nice
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