कितनी कोशिशें कर लीं हाकी को फिर आक्सीजन देने की. पता नहीं इससे ज़्यादा अब और क्या दरकार है ! हाकी खिलाड़ी उम्मीदें तो क्रिकेटरों की सी पाले बैठे हैं पर खेल रहें हैं मुहल्ला-टीमों की मानिंद.
इस बार हाकी को किसी भी तरह से क्रिकेट से कम कवरेज़ नहीं मिली. पर किया क्या, वही ढाक के तीन पात. फिर कहते हैं कि कोई हाकी को बढ़ावा नहीं देता. खेल जज्बे से चलता है, जीत का जज्बा.
बहानेबाज़ी बंद कर जीतना शुरू करो, स्टार तो लोग तुम्हें बना ही देंगे.
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