राम लाल री राम राम जी,

Saturday, March 20, 2010

लाठीधारी स्त्रिवादियों को भी जै राम जी की.

मुझे लगा कि घुघूती बासूती के ब्लाग पर की गई इस टिप्पणी को यहां पोस्ट की तरह लगाया जाना चाहिये:-


कुछ लोगों के दिमाग़ में यह अच्छे से बैठ गया है कि पुरूष केवल स्त्री का शोषक व केवल शोषक ही हो सकता है (कारण :- हो सकता है उनके घरों में या उनके आस पास ऐसा होता आया हो). ऐसे में उनकी आंखों पर एक ही मायोपिक चश्मा रहता है जिससे उन्हें यह बिल्कुल नहीं दिखता कि स्त्री व पुरूष एक दूसरे के पूरक भी हो सकते है (क्या है मन:स्थिति रूग्णता नहीं है?).
इस चश्में को उतार फेंक यह देखने की ज़रूरत है कि सिक्के के कई पहलू और भी हैं...क्या कभी यह जानने की कोशिश की है इन्होंने कि  पश्चिमी-समाज में स्त्री की भारत सरीखी तथाकथित दोयम स्थिति न होने के बावजूद वहां भी स्त्रियां वे काम करती हैं जिन्हें यहां महिलाओं की तथाकथित आज़ादी पर हमला माना जाता है. ठीक उसी तरह के काम वहां के पुरूष भी करते हैं जिन्हें यहां स्त्रिवादी जीव सामाजिक विकृति माने बैठे हैं.
नवजात को स्तनपान कराना यदि स्त्री ममत्व भी परिलक्षित करता हो तो यह क्रिया पुरूष की गुलामी की द्योतक है क्या ! वहीं, सड़क पर सीटी बजाना या हाथ उठाने की हिमाकत को औचित्यपूर्ण विकृत मस्तिष्क ही ठहरा सकता है...
... one up man-ship के बजाय ज़रूरी है कि समाज के दोनों अंग ठंडे दिमाग़ से काम लें और posturing बंद करें.
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