सोचना तो सरकार को भी चाहिये कि जब, संसद व राज्यों में पहले से ही अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण है तो क्यों नहीं जनप्रतिनिधियों की समस्त संख्या में से महिला आरक्षण दिया जाता.
या कहिये कि कुल सीटें 100, अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए 23, बाक़ी बची 77, तो 77 में से 33% का आरक्षण क्यों !
क्यों नहीं 100 में 50% आरक्षण दे देते महिलाओं को. जाति-आरक्षित सीटें तो पहले ही चिन्हित हैं, 100 में से भी एक अनुपात में तय कर दें कि कौन कौन सी सीटें केवल महिलाओं के लिए रहेंगी. इससे मुलायमों/ लालुओं का अफ़ारा भी ठीक हो जाएगा, सदनों में महिलाएं भी प्रयाप्त संख्या में आ पाएंगी.
पर बिल्ली के गले घंटी बांधे कौन ? न सोनिया गांधी मेरा ब्लाग पढ़ती है न मनमोहन सिंह, और जो, मुझ सरीखे, पढ़ते भी हैं उनकी बेचारे मुलायमों/ लालुओं जितनी ही चलती है :-)
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