तमाम बसें बंद कर दीं. अब लोग बेचारे बसों से दुगना किराया देते हैं और मज़बूरी में मेट्रो में ठुस कर चलते हैं. चार-चार डिब्बों की मेट्रो को आठ-आठ डिब्बों की ज़रूरत है. लेकिन डिब्बे बढ़ाने के बजाय चवन्नी-चवन्नी के खर्चे पर, लोगों को धकिया कर ठेलने के लिए ठुल्ले भर्ती कर लिए हैं, चीन की तर्ज़ पर.
हवाई अड्डे से, 100-100 रूपये की टिकट वाली एक और ट्रेन की तैयारी है, उनके लिए जो हज़ारों की टिकट पर उड़ते हैं और जिन्हें लेने के लिए कारें पहले से तैयार रहती हैं. यह ट्रेन कनाट प्लेस तक 20-25 मिनट लेगी लेकिन खाली चलेगी. वहीं, जो रेल अभी चलती है वह 60 मिनट लेती है व ठुस कर भरी रहती है.
दूसरी तरफ, बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों पर धक्के खाकर पहुंचने वालों के लिए फिर धक्के ही धक्के. अंधेर नगरी चौपट राजा.
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सही लिखा है, लेकिन किया क्या जाये. हाथ अब गर्दन पर पहुंच गया है.
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