आओ तरक़्की की बात करें
तरक़्की की क्या कहूं, मेरे प्रधानमंत्री 6 से 10 के बीच की सकल घरेलू उत्पाद की बात करते हैं. इसी के चलते शहरों में खाते-पीते लोगों की संख्या बढ़ने का सबूत है बजन कम करने की दुकानें खुलती ही चली जा रही हैं
दूसरी तरफ़ गांव का किसान दु:खी होकर मज़दूर बन इन्हीं शहरों में आ भटकने लगा है.
कैसी तरक़्की है ये, इसे मेरे गांवों में भी तो पहुंचाओ.
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अच्छा प्रश्न है।
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