राम लाल री राम राम जी,

Saturday, March 13, 2010

आओ तरक़्की की बात करें

तरक़्की की क्या कहूं, मेरे प्रधानमंत्री 6 से 10 के बीच की सकल घरेलू उत्पाद की बात करते हैं. इसी के चलते शहरों में खाते-पीते लोगों की संख्या बढ़ने का सबूत है बजन कम करने की दुकानें खुलती ही चली जा रही हैं

दूसरी तरफ़ गांव का किसान दु:खी होकर मज़दूर बन इन्हीं शहरों में आ भटकने लगा है.


कैसी तरक़्की है ये, इसे मेरे गांवों में भी तो पहुंचाओ.

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रेडि‍यो टीवी से दुनि‍या का पता चलता रहता है. कभी कभी अख़बार मि‍ल जाता है तो वो भी पढ़ लेता हूं.