उस दिन मैं बात कर रहा था - " भई राम लाल, ये ब्लाग लिखने की क्या सूझी ?"
राम लाल -"अरे भाई, जब ये लेखक टाइप लोग कुछ कुछ लिख कर इस मुग़ालते में रहते हैं कि उनके लिखे से समाज बदल जाएगा तो फिर मैं क्यों पीछे रहूं !"
-"तो ?"
-"तो क्या, मैंने भी ठान ली कि मैं भी रहे-सहे समाज को हिन्दी ब्लाग लिख कर बदल डालूंगा, और साथ ही साथ बैठे-ठाले हिन्दी की सेवा भी हो जाएगी."
-"हें हें हें"
-"हें हें हें क्या कर रहे हो, यही सच्चाई है. न मानो तो किसी से भी पूछ लो."
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