इन सबके चलते एक बात तो तय है कि उन लाखों सच्चे सन्यासियों से भी लोगों का विश्वास उठने लगा है जो जीवन पर्यंत लोक व परलोक दोनों ही के उत्थान में लगे रहते आए हैं.
मीडिया को संयम से काम लेना चाहिये. पोनी-टेल वाले सेनसेशनलियों को बढ़ावा देने से पहले सोचना चाहिये कि क्या पांचों उंगलियां ही बराबर होती हैं ! विज्ञापन लेने के और भी हज़ार रास्ते हैं.
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सांच को आंच क्या?
ReplyDeleteआजकल बाबाओं की ग्रहचाल कुछ ठीक नहीं चल रही :-)
ReplyDeleteबाकि जब समाज का सम्पूर्ण ढाँचा ही विकृ्त हो चुका है तो बाबा लोग भी भला कहाँ बच सकते थे..हाँ ये जरूर है कि चन्द लोगों की करणी का फल बाकी समाज को भी भोगना पडता है ओर सच्चे लोगों को भी सन्देह की नजर से देखा जाने लगता है!
बाबाओं के दिन ठीक नहीं चल रहे हैं...
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